मुख्त़सर तआर्रुफ़
विलादत: 38 हिजरी जमादीऊअव्वल
मुक़ामे विलादत – मदीनए मुनव्वरा
कुन्नियत – अबु मोहम्मद
अलक़ाब – ज़ैनुल आबेदीन, सय्यदुस्साजेदीन, वारिसे इमामुल नबीईन, इमामुल मोमेनीन, आबिद, सज्जाद, वग़ैरह
वालिदे गिरामी – हज़रत इमाम ह़ुसैन (अ.स.)
वालिदाए गिरामी – जनाबे शहर बानो या शाहे जि़नान
दादा – हज़रत इमाम अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.)
दादी – खातूने जन्नत हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.)
नाना – आख़री बादशाहे ईरान यज़्दो ज़र्द बिन शहरयार (कसरा नौशेरवान)
खा़नदानी शराफ़त – आप को इब्नुल खै़रतीयान भी कहा जाता है। हज़रत ख़त्मी मरतबत (स.अ.) ने फ़रमाया ख़ुदा ने दुनिया में दो कौ़मों को ज़्यादा शराफत और इज़्ज़त अता की है। अरब में क़ुरैश को और अजम में फा़रस को। इस तरह इमामे सज्जाद (अ.स.) दोनो तरफ़ से इज़्ज़तो शराफत के हामिल क़रार पाए।
अज़वाज – उम्मे अब्दुल्लाह फा़तिमा दुख़तरे इमामे हसन (अ.स.), इनके अलावा और भी बीवियाँ थीं।
औलाद – अब्दुल्लाह, हसन, हुसैन, ज़ैद, उमर, अब्दुर्र रहमान, फातिमा, सकीना, ख़दीजा, अतिया
मुद्दते इमामत – 35 साल चन्द माह
मुद्दते इमामत में बादशाहों का दौर – यज़ीद बिन मुआविया, मुआविया बिन यज़ीद, मरवान बिन हकम, अब्दुल मलिक बिन मरवान, हश्शाम बिन अब्दुल मलिक, वलिद बिन अब्दुल मलिक
शहादत – सन 95 हिजरी, 25 मोहर्रम बज़रिए ज़हेर
क़ातिल मलउन – वलीद बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान। (मरवान बिन हकम जिसै पैग़म्बर (स.अ.) ने मदीने सेबाहर किया था।)
क़ब्रे मुतह्हर – जन्नतुल बक़ी – चचा इमाम हसन के पेहलू में
उमर – 57 साल
इमाम (अ.स.) का ज़ोहद – निहायत सादा ज़न्दगी बसर करते थे। और जो सरमाया होता उसे फु़क़रा और मसाकीन में तक़सीम कर देते थे। रात की तारीकीयों में जब हर तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ था। उस वक़्त इमाम अपने दोश पर रोटियाँ उठाकर ग़रीबों और मिसकीनों में तक़सीम कर देते थे। और किसी अपने को ख़बर भी न होती थी। इमाम की शहादत के बाद पता चला कि सौ घर ऐसे थे जिनकी सरपरस्ती आप फ़रमाते थे। लेकिन खु़द घर वालो को इसकी ख़बर न थी कि यह कौन शख़्स है। मामूली ग़िज़ा पर इकतिफा करते और परेशान हाल और मकरूज़ के क़र्ज़ो को अदा फ़रमाते थे।
इबादत व मुनाजात का हाल – आप रोज़ो शब में एक हज़ार रकअत नमाज़ पढ़ लेते थे। आपने एक मस्जिद बनाई थी जब लोग सो जाते थे, नाफेलए शब के लिए आप मस्जिद में तशरीफ लाते और बुलन्द आवाज़ से दुआओं मुनाजात फरमाते के ऐ अल्लाह रोज़े क़यामत खौफ़ से तेरे सामने खड़ा होने की ताक़त नहीं है। फ़र्शे ख्वाब पर सोने और तकिया लगाने को दिल नही चाहता और पैर ज़मीन पर ख़म होकर चेहरऐ मुबारक ख़ाक पर रख देते और इस क़द्र रोते कि घर के लोग आवाज़ सुनकर जमा हो जाते और गिरिया करने लगते थे। और बस यही फ़रमाते
ऐ अल्लाह तू मुझसे राज़ी होजा, जब मैं तूझ से मिलूँ
आप का अखलाक़ – हर तरह के लोगों के साथ हुसने अख़लाक़ और मका़रिमे अखलाक़ से पेश आते। आप के सामने नादान, जाहिल, दुश्मन भी आप को बुरा भला कहते, मगर आप उनसे उनकी हाजत दरयाफ़्त फ़रमाते और मुश्किल दूर करते, और मक़्रूज़ के कर्ज़ की आदाएगी फ़रमाते, बेलिबास को लिबास अता फ़रमाते। आप (अ.स.) के अख़लाक़ के लए दुआऐ मका़रिमुल अखलाक़ और रिसालतुल हुक़ूक़ का मुतालेआ कर लिया जाए तो आप की आसमानी व इलाही शख़सियत का अन्दाज़ा हो जाएगा। सहीफ़ए सज्जादिया बेहतरीन दुआओं का मजमुआ है। जिसे आपने लोगों के लिए अपने बाद राहे हिदायत के लिए सरमाए के तौर पर अता फ़रमाया है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की इमामत पर हजरे अस्वद की गवाही
मुअर्रेखी़न ने लिखा है कि हज़रत मोहम्मदे हनफिया और इमाम के दरमियान इमामत के मुतआलिक़ कुछ इख्ते़लाफ़ हुआ और उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) के बाद इमामत उनका हक़ है। तो इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि क़ुरआन कहता है
‘व ऊलुल अर्हामे बाज़ोहुम औला मिन बाज़िन’
“और क़राबतदार आपस में बाज़ एक दूसरे से औला और बेहतर हैं।” आपने फ़रमाया कि यह आयत मेरी और मेरे बाद मेरी औलाद की इमामत पर दलालत करती है। इसके अलावा आपने फ़रमाया – चचा चलिए संगे असवद को? बताऐं वह जो फ़ैसला करे उसपर हम और आप क़ायम रहें। कहने लगे यह कैसे होगा, वह न बोल सकता है और न ही जवाब दे सकता है। तो इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया – हम लोगों के फै़सले के लिए अल्लाह उसे गोया कर देगा। दोनों हजरे अस्वद के पास आए, इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया – चचा इससे कलाम कीजिए, वह क़रीब गए, कलाम किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। फिर इमाम (अ.स.) पत्थर के क़रीब गए और उस पर दस्ते मुबारक रख कर खु़दा की बारगाह में अर्ज़ किया कि इस पत्थर को गोया कर दे। फिर संगे अस्वद से कहा – मैं उस ख़ुदा का वास्ता देकर तुझसे सवाल करता हूँ जिसने मुझमें मवासीके इबादत और इस अम्र की शहादत की है कि किसने उन को अदा किया और किसने अदा नहीं किया, अमानत रखें हैं। मुझको ख़बर दो कि इमाम हुसैन (अ.स.) के बाद इमामत व वसीयत किस की तरफ़ है। यह सुनकर संगे अस्वद इस तरह हिलने लगा कि क़रीब था कि अपनी जगह से हट जाए। फिर हुक़्मे ख़ुदा से गोया हुआ कि ‘ऐ मोहम्मदे हनफिया इमामत अली इब्नुल हुसैन (अ.स.) के हवाले कर दो। तो जनाबे मोहम्मद हनफीया ने बारगाहे अहादियत में अर्ज़ किया परवरदिगार मुझे बख़्श दे। और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की इमामत का इक़रार किया और इस्तिग़फा़र किया। (मुल्लाह जामी, शवाहि दुन्नबी स 179 – वसीलतुन निजात से 339 मुल्लाह मुबीन फरनगीए अली ने यह वाके़आ इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और आप के बाद औलादे ताहेरीन की इमामत के लिए बड़ी अज़ीमुश्शान दलील है) और इससे पता चलता है कि बारह इमामो की इमामत मिन जानिब अल्लाह होती है। वरना हजरे अस्वद जिस को ख़ुदा ने जिब्राईल के ज़रिए बहिश्त से खा़नए काबा में नसब कराया है वह इस तरह हक़ की गवाही न देता। उसका गवाह बनना तमाम आलमे इसलाम के लिए लमहए फ़िक्र है। अगर मुसलमान उस पर सनजीदगी और बग़ैर ताज्जुब के ग़ौर कर लेते तो सारे इख़्तिलाफ दूर हो जाते। अल्लाह हम सब को राहे हिदायत पर क़ायम रखे और इमामे ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की सीरत और किरदार के सहारे ज़िन्दगी बसर करने की तौफीक़ इनायत फ़रमाए।
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