मुसलमानों की तारीख़ में जब कभी भी बेवफ़ाई और अहद शिक्नी की मिसाल देनी होती है तो लोग सिर्फ़ अहले कूफा़ की मिसाल देते हैं। इसका सबब कर्बला का सन 61 हिजरी का वो वाक़ेआ है जिस में इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके खा़नदान के कई अफ़राद की दर्दनाक शहादतें वाके हुईं। ये अहले कूफा़ ही थे जिन्होनें इमाम हुसैन (अ.स.) को ख़त लिख-लिख कर बुलाया और फिर उनका साथ नही दिया बल्कि शाम के लशकर में शामिल होकर इमाम के ख़िलाफ़ जंग की और उन्हें क़त्ल किया। तारीख़ के सफ़हात पर ये बात सब्त है। इतना ही नहीं तारीख़ में उनके और भी सनगीन जरायेम नक़्ल हुये हैं । इस शहर के लोगों ने सिब्ते अकबर इमाम हसन (अ.स.) से दग़ाबाज़ी की जिस की बिना पर सुल्ह का वाक़ेआ पेश आया। फिर यही लोग थे जिन्होंने अपने महमान और सफी़रे इमाम हुसैन (अ.स.) जनाबे मुस्लिम से दग़ा की और इनको यको तन्हा छोड़ दिया जिस के सबब आप को इब्ने ज़ियाद मलऊन ने ग़रीबूल वतनी की हालत में शहीद कर दिया। ये सारे जुर्म सन्गीन से सन्गीन तर हैं और इन तमाम मोआमेलात में उन लोगों की अहद शिक्नी आर बेवफाई ज़ाहिर होती है। उनकी इस बेवफाई की कोई वकालत नही कर सकता और न ही उन के लिये कोई उज़र पेश किया जा सकता है।
मगर उन से ज़यादा बेवफा़ और अहद शिक्न अफ़राद भी इस्लाम की तारीख़ में मौजूद हैं। और ये लोग मदीने के वो अशख़ास हैं जिनको असहाबे रसूल होने का शरफ भी हासिल था। उनकी बेवफा़ई और अहद शिक्नी की दास्तान कुरआन इस तरह बयान करता है:
“आपके गिरद देहातों में भी मुनाफे़कीन हैं। और मदीने के वो लोग भी हैं जो निफा़क में माहिर और सरकश हैं आप उनकी हक़ीक़त जानते नही मगर हम खूब जानते हैं इस लिये हम उन पर दोहरा अज़ाब नाज़िल करेंगें आर बिलआखि़र अज़ाबे अज़ीम में मुबतला किये जायेंगे….” (सुरए तौबा: 101)
यही वो लोग थे जिन्होंने उम्मते मुस्लेमा में अहलेबैत रसूल के तईं बेवफ़ाई के बीज बोये । इनकी अहद शिक्नी की सब से ज़्यादा वाज़ेह मिसाल सन 11 हिजरी में ज़ाहिर होती है जब सरवरे कायनात इस दारे फा़नी से रूख़्सत हुये। बिला किसी खौ़फ़ और झिझक के अहले सकी़फा़ ने हुकूमत पर कबज़ा कर लिया। उस वक्त शहरे मदीना हुकूमते इस्लाम का मरकज़ था। इस बात को अहले मदीना बख़ूबी जानते थे के ख़िलाफ़त और विलायत पर सिर्फ अली इब्न अबी तालिब (अ.स.) का हक़ है और इस बात का ऐलान ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम ने ग़दीर में फ़रमाया था। इसके अलावा इस मौजू़ पर दुसरी सब से अहम रिवायत ‘ हदीसे सक़लैन’ के ज़यादा तर रावियान मदीने के अफ़राद ही हैं। इस तरह मदीने के रहने वाले मोहाजेरीन व अन्सार सब इस बात से बख़ूबी वाकि़फ थे के इसलाम में आले रसूल की क्या अज़मत है। अपनी ज़िन्दगी में रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) ने बारहा अपने अहलेबैत की बुजु़र्गी और मनज़ेलत की निशानदही की । इस शहर में वो लोग भी मुकी़म थे जिनको इस्लाम में ‘ साबेकी़न’की सन्द मिली है। ये अहले बद्र व अहले ओहद थे। इन लोगों ने बारहा सरवरे कायनात को ये कहते हुये सुना है के मेरे बाद तुम्हारा सय्यदो सरदार अली (अ.स.) है। पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत से मवाके़ पर उन लोगों से वसीयत फरमाई है के ‘‘ ….. मैं तुमको अपने अहलेबैत के मुताल्लिक़ वसीयत करता हूँ” (हदीस सक़लैन, सही बुखा़री)
मगर अफ़सोस जैसे ही रसूलउल्लाह (स.अ.व.व.) की आँख बंद हुई उन्होंने ये सब भुला दिया और इसी मदीने में अहलेबैते रसूल पर मज़ालिम ढाये गए और पूरा मदीना खा़मूश रहा। रसूल की बेटी मोहाजेरीन व अन्सार के घर घर जा कर उन्हें अली(अ.स.) की विलायत याद दिलाती रही मगर किसी ने भी उनका साथ न दिया। अहले कुफा ने तो रसूल के नवासे से 50 साल बाद दगा़बाज़ी की थी जबके अहले मदीना ने रसूलउल्लाह की आँख बंद होते ही दुख़तरे रसूल के हक़ को पामाल होते देखा और कुछ नही किया। दामादे रसूल के गले में रेसमाने जु़ल्म बाँध कर दरबार तक खिंचा गया मगर मदीने के किसी फ़रद ने उनकी हिमायत नहीं की, इन सब ने रसूल के अक़वाल व अहादीस को फ़रामोश कर दिया।
तारीख़ में ये भी महफूज़ है कि जब हज़रत अली (अ.स.) को ज़ाहेरी ख़िलाफ़त मिली तो ये मदीने के लोग ही थे जिन्होंने सब से पहले उनके खि़लाफ़ सरकशी की और जंगए जमल वाके़अ हुई । इतना ही नहीं जब अमीरूलमोमेनीन को बागि़यों से जंग करने के लिये लशकर की ज़रूरत हुई तो मदीने वालों ने आपका साथ देने से इन्कार कर दिया। उस वक्त आपको कूफा़ का रूख़ करना पड़ा जिसके सबब आप (अ.स.) के लशकर में अकसरीयत कुफे वालों की थी। इसलिये भी मौलाए कायनात को मदीना छोड़ कर शहरे कूफा़ को अपना दारूल-इमारह बनाना पड़ा। अब मोहतरम का़रईन खु़द फै़सला करें के सब से पहले और सब से बड़ी बेवफा़ई कूफे़ वालों ने की है या मदीने वालों ने।
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