इसलाम की तालीमात में एक अहम रुक्न एक दूसरे को सलाम करना है। अहादीसे नबवी (स.अ.) में ‘इफशाउस सलाम’ की बदुत ज़्यादा ताकीद की गई है। क़ुरआने करीम में भी सलाम करने पर बहुत ज़ोर डाला गया है। जब घर में दाखिल हो तो एहले खाना पर सलाम करो।
इस तरह के हुक्म कुरआन की आयतों में दर्ज हैं। इसी तरह अम्बिया केराम पर अल्लाह की जानिब से सलाम भेजने का ज़िक्र भी क़ुरआन में रक़म है।
मसलन सूरए साफ़्फ़ात में जनाबे इब्राहीम, जनाबे नूह, जनाबे मूसा और जनाबे हारून (अ.स.) पर अल्लाह की तरफ से सलाम आया है। इसी तरहा क़ुरआन में यह फिक़रे भी मिलते हैं कि “सलामुन अला आले यासीन।” दीगर मुक़ामात पर जनाबे ईसा (अ.स.) और जनाबे यहया (अ.स.) पर भी सलाम का ज़िक्र है। यक़ीनन यह अफराद खुदा के नज़दीक एक बुलन्द मुक़ाम और मरतबा रखते हैं। कुतुबे अहादिस में रसूलल्लाह (स.अ.) की ज़ौजा उम्मुल मोमेनीन जनाबे ख़दीजा (स.अ.) के लिए भी ख़ुदा की जानिब से सलाम आने का ज़िक्र मिलता है। रिवयात में मिलता है कि जब भी जिब्रईल आँ-हज़रत (स.अ.) की ख़िदमत में हाज़िर होते तो जब तक जनाबे ख़दीजा (स.अ.) ज़िन्दा रहीं उनको भी सलाम किया करते थे। (बिहारुल अनवार., जि. 14, स. 3)
रिवायत है कि जिब्राईल जब रसूलल्लाह (स.अ.) के पास आते और अगर जनाबे (स.अ.) मौजूद न होती तो रसूलल्लाह (स.अ.) से इल्तेमास करते कि आप (स.अ.) उनके रब का सलाम उन तक पहुँचा दीजिए, इसी तरह मेराज की रिवायतों में एक रिवायत यह भी मिलती है: ‘अन अबी जाफ़र (अ.स.) क़ाल अन रसूलुल्लाह (स.अ.) क़ाल इन्ना जिब्राईल (अ.स.) क़ाला ली लैलतो असरा बी हीन रजौतो व कु़लतो या जिब्राईलो हल लक मिन हाजतिन?’ क़ाल हाजती अन्न तकर्रहा अला खदीजते मिनल्लाहे व मिन्नी अस्सलाम व हद्दसना इन्द ज़ालिका मिनल्लाह क़ालत हीना लक़ाहा नविल्लाहे (स.अ.) फक़ाल लहल्लज़ी क़ाल जिब्रईलो फक़ालत इन्नल्लाह हुवस्सलाम व मिनहुस्सलाम व एलैहुस्सलाम व अला जिब्रईलस सलाम’ (बिहारुल अनवार, जि. 14, स. 7)
इमाम बाक़िर (अ.स.) फरमाते है कि जब रसूलल्लाह (स.अ.) मेराज से पलटे तो आप ने जिब्राईल से फरमाया – क्या तुम्हारी कोई फर्माइश है, जो में पूरा करूँ? तो जिब्राईल मे जवाब दिया – हाँ मैं चाहता हुँ कि आप अल्लाह की जानिब से और मेरी तरफ से भी जनाब ख़दीजा (स.अ.) को हमारा सलाम पहुँचा दीजिए। जब रसूलल्लाह (स.अ.) की मुलाकात जनाबे ख़दीजा (स.अ.) से हुई तो आपने जिब्राईल की बात उनके सामने दोहराई। जनाबे ख़दीजा (स.अ.) ने जवाब दिया बेशक अल्लाह ही सलाम है, उसी से सलामती होती है, उसी से सलामती की उम्मीद भी रहती है और जिब्राईल पर भी सलाम हो।’
इसीलिए रसूलल्लाह (स.अ.) की बाज़ अज़वाज, रज़ीअल्लाहो अनहुमा हों या न हों मगर जनाबे खदीजा (स.अ.) यकीनन सलामुल्लाहे अलैहा हैं।
क्या अबू बक्र की ख़ेलाफ़त को मुसलमानों का इज्माअ़् ह़ासिल था? (अह्ले तसन्नुन आ़लिम की…
रसूल (स.अ़.व.आ.) के ह़क़ीक़ी अस्ह़ाब कौन हैं? अह्ले तसन्नुन के यहाँ येह रवायत बहुत मशहूर…
वोह बह़्स जिस ने बहुत से लोगों को शीआ़ मज़हब में तब्दील कर दिया मुस्लिम…
बुज़ुर्गाने दीन की क़ुबूर पर तअ़्मीर क़ाएम करना सुन्नते सह़ाबा है। मुसलमानों में ऐसे बहुत…
अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली इब्ने अबी तालिब (अ़.स.) के फ़ज़ाएल शीआ़ और सुन्नी तफ़सीर में जारुल्लाह…
क्या मअ़्सूमीन (अ़.स.) ने कभी भी लअ़्नत करने की तरग़ीब नहीं दी? जब अह्लेबैत (अ़.स.)…