रसूले-खु़दा (स.अ.) की रोज़े वफात यानी दोशम्बाह को सुबह में बाज़ असहाब आप की ख़िदमत में जमा हुए तो आँ-हज़रत (स.अ.) ने उन से फरमाया:
‘क़लम और काग़ज़ ले आओ ताकि ऐसा नविश्ता लिख दूँ तुम्हारे लिए कि तुम हरगिज़ मेरे बाद गुमराह न हो’
उमर ने कहा:
‘इन्ना नबीया ग़लाबा अल वजाओ व इन्दाकुम किताबुल्लाहे हसबुना किताबुल्लाहे।’
“पैग़म्बर (अकरम) (स.अ.) पर (माज़ल्लाह) मर्ज़ ने ग़लबा पैदा कर लीया है। (इस बात का इशारा है कि वह जो कह रहे है उसकी तरफ मुतावज्जेह नही हो।) तुम्हारे पास तो ख़ुदा की किताब है। और हमारे लिए बस किताबे ख़ुदा काफी है।”
हवाला – तबक़ात इब्ने साद ज 2 स 242, चाप बैरूत, सही बुखारी बाब जवाएज़ुल वफ्द मिन किताबिल जिहाद ज 2 स 120 और बाबे इखराजुल यहूद मिन जज़ीरतुल अरब ज. 2 स. 136 में यह अलफाज़ मौजूद हैं।
दूसरी रिवायत में तबक़ात इब्ने साद में लिखा है कि उस वक़्त वहाँ मौजूद लोगों में से एक शख़्स ने कहा ‘इन्नन नबीयल्लाहे ल-या-हजरा’
कि बेशक नबीए खुदा हिज़यान बक रहे है। (माज़ल्लाह)
हवाला: चाप बैरूत, सही बुखा़री बाब जवाएज़ुल वफ्द मिन किताब ज. 2 स 232, तबक़ात इब्ने सअद में यह अलफाज ज 2 स 130 में बाबे इखराजुल यहूद मिन जज़ीरतुल अऱब ज 2 स 136, अलजिहाद जिल्द में मौजूद है। (फा का़लू हज़ारा)
इस बात का रद करने वाला यक़ीनन वही था जिसने हसबुना किताबुल्लाह (किताबे ख़ुदा काफी है) कहा है (उमर)।
अहले सुन्नत की किताबों में उमर का ऐतेराफ:- ख़ुद उमर ने इस शर्मनाक और बेहुदा अमल का ऐतेराफ किया है।
इमाम अबू फज़ल अहमद इब्ने अबी ताहिर ने उमर के हालात 3/97 में किताब ‘तारीखे़ बग़दाद’ में लिखा है। एक दिन उमर और इब्ने अब्बास के दरमियान तूलानी मुबाहिसा हुआ जिसमें उमर ने कहा – पैग़म्बरे अकरम (स.अ.) इस पर आज़ुर्दा ख़ातिर हुए। उस वक़्त मौजूद लोगों में से बाज़ लोगों ने कहा रसूलुल्लाह (स.अ.) का हुक़्म है। इसे अनजाम दिजिए। और बहसो गुफ्तगू मुजादिले के बाद कुछ लोगों ने काग़ज़ क़लम लाने का इरादा किया।
मगर आँ-हज़रत (स.अ.) ने फरमाया – ‘तुम सब मेरे पास से निकल जाओ’
तबक़ात इबने साद ज 2 स 242
उमर की इस गुस्ताख़ी के बाद अगर क़लम काग़ज़ लाया जाता और आँ हज़रत (स.अ.) कोई ऐसी वसियत नामा तहरीर फरमा देते जिसमें अइमा के नाम की तशरीह होती तो मुखालेफी़न चन्द लोगों को हाज़िर कर सकते थे कि वह इस बात की गवाही दें कि पैग़म्बर अकरम (स.अ.) ने इसे हालते हिज़यान में तहरीर फ़रमाया है।
जब उस वक़्त झगड़ा और निज़ा बढ़ गया तो पैग़म्बर (स.अ.) ने फरमाया – काला कूमूँ अन्नी वला यमबग़ी इन्दत तनाज़ओ
मेरे पास से उठकर चले जाओ कि नबी की बज़म में निज़ा करना सज़ावार नही है।
हवाला: स 22 सही बुखारी बाब किताबुल इल्म ज 15 स 1 तारीखे़ अबुल फिदा में ज़िक्र हुआ है।
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