सहाबा और अज़्वाज के हामीयों को मुस्तक़िल इस हक़ीक़त से नबर्द-आज़मा होना है कि उनके क़ाएदीन इस्लाम की तारीख़ के किसी भी अहिम वाक़ए में कभी भी अशराफिया की फहरिस्त में शामिल नहीं हुए।
इस में मुबाहिला का वाक़िया भी शामिल है, जिस में हज़रत रसूले ख़ुदा स.अ. ने नजरान के ईसाईयों का मुकाबला करने के लिए अपने अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का इंतिखाब किया। इस अहम मारके में सहाबा और रसूल की बीवीयां कहीं नज़र नहीं आईं, जो इस्लाम के लिए अच्छी चीज़ साबित हुई। फिर भी पहले यह जानना ज़रूरी है कि मुबाहिले का वाकिया अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के लिए इस्लाम में मक़ाम और हैसियत के लिहाज़ से क्या है?
एक दिलचस्प मुनाजरे में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को अपने ज़माने के ख़लीफ़ा हारून अब्बासी को देखा गया, कि किस तरह मासूम इमाम अलैहिस्सलाम सूरए आले इमरान की मुबाहिला आयत की रौ से हज़रत रसूले ख़ुदा स.अ. के फ़रज़न्द थे। हारून ने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से पूछा। रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के बेटे अइम्मा अलैहिमुस्सलाम कैसे हैं जबकि रिश्ता बाप के ज़रीये होता है ना कि माँ से? हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने आयते मुबाहिला से जवाब दिया ,”लेकिन जो शख़्स आपके इल्म में आ गया है इस के बाद इस मुआमले मैं आपसे झगड़ा करेगा, फिर कहें : आओ हम अपने बेटों को लायें तुम अपने बेटों को लाओ, हम अपनी औरतों को लायें तुम अपनी औरतों को लाओ और हम अपने नफ़्स को लायें तुम अपने नफ़्स को लाओ, फिर हम ख़ुदा की बारगाह में दुआ करें और झूठों पर अल्लाह की लानत हो।” (सूरए आले इमरान) उन्होंने मज़ीद कहा किसी ने भी यह दावा नहीं किया है कि अल्लाह के रसूल स.अ. ने अली अलैहिस्सलाम, फ़ातिमा सलामुल्लाहि अलैहा, हसन अलैहिस्सलाम और हुसैन अलैहिस्सलाम के अलावा किसी को भी मुबाहले के लिए लिया। लिहाज़ा इस आयत की इस तरह तशरीह की गई है- हमारे बेटे हसन अलैहिस्सलाम और हुसैन अलैहिस्सलाम हैं, हमारी औरतें सिद्दीका, ताहिरा, फ़ातिमा सलामुल्लाहे अलैहा हैं और अली बिन अबी तालिब अली अ.स. नफ़्स हैं। अमीर-ऊल-मोमेनीन अलैहिस्सलाम रसूलुल्लाह स.अ. के नफ़्स हैं। तमाम उलोमाए किराम इस हक़ीक़त पर मुत्तफ़िक़ हैं कि जिब्राईल ने उहद के वक़्त कहाः ऐ मुहम्मद, यह कुर्बानियां सब अली अलैहिस्सलाम की हैं, रसूल स.अ. ने जवाब दिया। यह इस वजह से है कि मैं अली से हूँ और अली मुझसे हैं। इस पर जिब्राईल ने जवाब दिया और मैं आप दोनों ही से हूँ । अल्लाह के रसूल अली के सिवा कोई जवान नहीं है और ज़ुल्फ़िक़ार के अलावा कोई तलवार नहीं है। अली अ.स. की मिसाल वही है जो इब्राहीम अलैहिस्सलाम की है जो क़ुरआने मजीद में है:
उन्होंने कहा हमने एक नौजवान को सुना है जिसको इब्राहीम कहते हैं। (सूरए अंबिया आयत 6.)
हमें जिब्राईल की तारीफ़ पर फ़ख़्र है कि वह यक़ीनन हमसे हैं।
अल-एहतजाज जि. 2 स. 29
ज़ख़ाइरुल-उक़बा स. 68
मजमउज़-ज़वाइद जि. 6 स. 114
उमदतुल-क़ारी जि. 16 स. 214
मोअ्जमुल-कबीर जिल्द 2 स. 318
कंज़ुल-उम्माल जि. 13 स. 144
सहाबा ,उमूमन , मुबाहिले के साथ मुंसलिक क़ाबिले ज़िक्र फ़ज़ीलत से वाक़िफ़ थे और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का एहतेराम करते हैं यहां तक कि अगर बदमज़गी से या कम से कम वह उन पर तन्क़ीद करने या उनसे ताज़ियत करने से परहेज करते हैं।
आमिर बिन साद बयान करता है कि मुआवीया ने मेरे वालिद से कहा तुमको अबूतराब अमीरुल-मोमेनीन अली अ.स. पर लानत भेजने से कौन सी चीज रोकती है?
उसने जवाब दिया। हज़रत रसूले ख़ुदा स.अ. ने उनके बारे में तीन बातें बयान कीं……. जब मुबाहिला की आयत नाज़िल हुई । आओ हम अपने बेटों और आप अपने बेटों को बुलाओ… रसूल स.अ. ने अली, फ़ातिमा हसन, हुसैन अलैहिमुस्सलाम को बुलाया और ऐलान किया। यह मेरी औलाद हैं।
तफसीर अल-अयाशी सूरए आले इमरान (3): 61 के तहत
तफसीरुल बुरहान जि. 1 सफा 29.
अगरचे मुसलमान मुबाहिला से बेनयाज़ नज़र आते हैं और इस बात को बरक़रार रखते हैं कि सहाबा भी अहल थे लेकिन हक़ीक़त यह है कि रसूले ख़ुदा स.अ. ने सहाबा को किसी वजह से नहीं लिया। माज़ी में कोई नबी भी सहाबा के साथ मुबाहिला के लिए हाजिर नहीं हुआ था, वह हमेशा अपने क़रीबी ख़ानदान के साथ हाज़िर होते थे। बनी इसराईल जिन्होंने बहुत सारे अंबिया को देखा था वह इस सुन्नत से वाक़िफ़ थे इस लिए इस वाक़ए को नुमायां करते हैं। हुज़ैफा बिन यमान बयान करते हैं। मैं मदीना में था जब नजरान के दो राहिब सईद और आक़िब हज़रत रसूले ख़ुदा स.अ. के पास आए और उन्हें मुबाहिला के लिए पेश किया। तब हज़रत रसूले ख़ुदा स.अ. मुबाहिले के लिए तैयार हुए तो, आक़िब ने सईद को बताया। ऐ सईद अगर मोहम्मद स.अ. अपने अस्हाब के साथ मुबाहिले के लिए आए तो वह नबी नहीं हैं। अगर वह अपनी औलाद के साथ आयेंगे तो वह सच्चे नबी और रसूल है।
शवाहिदुत्तनज़ील सूरए आले इमरान (3): 69 के तहत
नूरानी शख़्सियात अलैहिमुस्सलाम को देखकर नजरान के मसीही मुबाहिले से दस्त बरदार हो गए क्योंकि उन्हें ख़दशा (डर) था कि कोई भी ईसाई आले मोहम्मद अलैहिमुस्सलाम की लानत और बददियानती से नहीं बच सकेगा। यह आले मोहम्मद अलैहिमुस्सलाम की सच्चाई की तौसीक़ थी वरना ईसाई भी पीछे नहीं हटते। अगरचे इस्लाम और तौहीद से कुफ्ऱ रखने वाले, नजरान के मसीही किरदार के अच्छे जज हुए।
बद-क़िस्मती से मदीने के मुसलमानों के बारे में भी ऐसा नहीं कहा जा सकता। मुबाहिले के वाक़ए के तक़रीबन एक साल बाद, इन ही मुसलमानों ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहि अलैहा को विरासत के तनाज़ा में चैलेंज किया और उनकी गवाही और इमाम अली बिन अबी तालिब अ.स. और इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. की शहादतों को मुस्तरद (रद) कर दिया। और मअस्सिर तरीक़े से उनको झूठा समझा (मआज़ल्लाह)। इसके बजाय उन्होंने इस मुआमले में सहाबा और अज़वाज की गवाही क़बूल कर ली
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