अल्लाह अज़्ज़वजल ने इन्सानों पर जिन चीज़ों को वाजिब किया है उनमें उसकी तौहीद का इक़रार है, उसके नबी (स.अ.) की नबुव्वत का इक़रार और हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) की विलायत का इक़रार है। जिस तरह उसकी तौहीद और नबी (स.अ.) की नबुव्वत के इक़रार में कोई रिआयत नहीं है उसी तरह खालिक़े काएनात ने मौला अली (अ.स.) की विलायत के इक़रार में भी किसी तरह की कोताही की गुंजाइश नही रखी है। इस मआमले में उसने अंबियाए केराम (अ.स.) से भी उनकी विलायत के क़ुबूल करने का मुतालेबा रखा है। बल्कि रिवायतों में तो यह भी मिलता है कि जितना ज़्यादा उन अंबिया (अ.स.) ने इस विलायत को तस्लीम किया है उतना ज़्यादा उनका रुत्बा और मर्तबा खुदा के नज़दीक बुलन्द से बुलन्दतर हुवा है।
‘किताबुल मोअजिज़ात’ के हवाले से मोहम्मद बिन साबित से नक़्ल हुवा है कि “एक मर्तबा मैं इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की ख़िदमत में मौजूद था। इतने में अब्दुल्लाह बिन उमर आया और उसने आप (अ.स.) से कहा मुझे इत्तेला मिली है कि आप (अ.स.) कहते हैं कि हज़रत यूनुस (अ.स.) पर आपके दादा की विलायत पेश की गई थी मगर उन्होंने तरददुद का इज़्हार किया था जिसकी वजह से अल्लाह ने उन्हें शिकमे माही में क़ैद किया था।?”
इमाम (अ.स.) ने फरमाया: “इसमें तअज्जुब की कौनसी बात है?”
उसने कहा: “मैं इस बात को मान नही सकता।” आप (अ.स.) ने फरमाया “तो क्या तू उस मछ्ली को अपनी आखों से देखना चाहता है?”
उसने कहा: “जी हाँ।” आप (अ.स.) ने फरमाया: “अच्छा बैठ जाओ। वह बैठ गया। आपने अपने ग़ुलाम से फ़रमाया कि दो कपड़े की पट्टियाँ ले आओ। ग़ुलाम दो पट्टियाँ ले आया। आप (अ.स.) ने मुझसे फ़रमाया कि तुम एक पट्टी अब्दुल्लाह बिन उमर की आखों पर बांध दो और एक पट्टी ख़ुद अपनी आखों पर बांध लो। नौकर ने हुक्म की तामील की। फिर आप (अ.स.) ने कोई कलाम किया कुछ देर बाद फ़रमाया कि अब तुम दोनों अपनी पट्टियाँ खोल लो। हमने पट्टियाँ खोल ली तो हमने अपने आपको एक चादर पर बैठा हुवा देखा और हमने अपने आपको साहिले समन्दर पर पाया। फिर आप (अ.स.) ने एक कलाम किया जिसकी वजह से समन्दर की मछ्लीयाँ ज़ाहिर हुईं और उनके दरमियान एक बहोत बड़ी मछ्ली नमूदार हुई। आप (अ.स.) ने उससे फ़रमाया: “तेरा नाम क्या है?”
उसने कहा: “मेरा नाम नून है और मैंने ही यूनुस पैग़म्बर को निगला था।” आप (अ.स.) ने फ़रमाया: “यूनुस (अ.स.) को तेरे शिकम में क़ैद क्यों किया था? ”
मछ्ली ने कहा: “उनके सामने आपके जद (अली (अ.स.)) की विलायत पेश की गई थी उन्होंने उस का इन्कार किया इस लिए उन्हें मेरे शिकम में क़ैद किए गया था और जब उन्होंने मेरे शिकम में रहकर विलायत अली (अ.स.) का इक़रार किया और उन्हें उनकी विलायत का यक़ीन आ गया तो अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया। मैंने उन्हें बाहर उगल दिया था और जो भी अहलेबैत (अ.स.) की विलायत का मुन्किर होगा अल्लाह उसे नारे दोज़ख के सिपुर्द कर देगा, जहाँ वह हमेशा रहेगा।” (मोअजिज़ाते आले मोहम्मद, अल्लामा सैय्यद हाशिम बेहरानी ज 2 स 327,328)
इस रिवायत से न सिर्फ हज़रत अली (अ.स.) की विलायत की एहमियत का अंदाज़ा होता है बल्कि अहलेबैत (अ.स.) की विलायत की एहमियत का भी पता चलता है। इस विलायत के क़ुबूल न करने में किसी को रिआयत नही है। जब नबीए खुदा के लिए इस का क़ुबूल करना लाज़मी है तो आम उम्मती की क्या हैसियत है।
अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी जअलना मिनल मोतमस्सेकीन बेविलायते अमीरिल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.)
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