वोह बह़्स जिस ने बहुत से लोगों को शीआ़ मज़हब में तब्दील कर दिया

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वोह बह़्स जिस ने बहुत से लोगों को शीआ़ मज़हब में तब्दील कर दिया

मुस्लिम अक्सरीयत अबू बक्र को रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) का ज़ानशीन मानने के लिए कुछ दलाएल पेश करते है। येह दलाएल चार अहम नुक़ात के गिर्द घूमते हैं, जो गुज़श्ता बरसों से काफ़ी बह़्स का मौज़ूअ़्‌ रहे हैं। ऐसी ही एक दिलचस्प बह़्स में इमाम सादिक़ (अ़.स.) के एक साथी ने अबू बक्र के ह़क़ में तमाम दलाएल को रद्द कर दिया और पैग़म्बरे अकरम (स.अ़.व.आ.) के फ़ौरन बअ़्‌द अ़ली इब्ने अबी तालिब (अ़.स.) की ख़ेलाफ़त के ह़क़ को साबित करने के लिए अपने दलाएल पेश किए हैं।

येह मुनाज़रा इमाम सादिक़ (अ़.स.) के शागिर्द मोअ्‌मिने ताक़ और इब्ने अबी ख़ुदरा के दरमियान वाक़ेअ़्‌ हुआ है।

इब्ने अबी ख़ुदरा ने कहा: ऐ शीआ़! मैं आप के नज़्दीक़ इस बात का इक़रार करता हूँ कि अबू बक्र, अ़ली (अ़.स.) और दीग़र तमाम सह़ाबा से चार ख़सलतों की बेना पर अफ़ज़ल है जिनको लोगों में से कोई चैलेन्ज नहीं कर सकता। और येह ख़ुसूसियात हैं:

१)         अबू बक्र दूसरे शख़्स हैं जिन्हें रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) के घर में दफ़्न किया गया।

२)        येह कि वोह ग़ार में रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) के साथ थे और दो में से एक हैं।

३)        येह कि उन्होंने रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की रेह़लत से पहले आख़री जमाअ़त की नमाज़ पढ़ाई।

४)        येह कि अबू बक्र सबसे ज़्यादा सच्चे (अस्सिद्दीक़ुल अकबर) हैं।

वोह अबू बक्र को सिर्फ़ एक शख़्स के तौर पर क़रार दे रहे थे जो नबी (स.अ़.व.आ.) के बअ़्‌द इन चारों ख़ुसूसीयत के ह़ामिल थे।

अबू जअ़्‌फ़र मोह़म्मद इब्ने नोअ़्‌मान जो मोअ्‌मिन अत्ताक़ के नाम से मशहूर हैं, कहने लगे: ऐ इब्ने अबी ह़ुज़्रा! मैं आप के सामने येह भी इक़रार करता हूँ कि अ़ली (अ़.स.), अबू बक्र और दीगर तमाम सह़ाबा से क़ुरआन में बयान कर्दा तीन ख़सलतों और रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की तौसीक़ (नस) और अ़क़्ल की दलील से अफ़ज़ल हैं।

१) पहले दअ़्‌वे का रद्द – अबू बक्र को रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) के घर में दफ़्न किया गया

मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने मज़ीद कहा: अगर रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) ने अपना घर अपने बच्चों और अज़्वाजे मुत्तहरात के लिए विरासत के तौर पर दिया था तो (वेसाल के वक़्त) आप (स.अ़.व.आ.) की ९ बीवीयाँ थीं। जिस घर में अबू बक्र को दफ़्न किया गया है वोह आ़एशा का ह़िस्सा है जो कि ९ वें ह़िस्से का १/८ ह़िस्सा है और येह किसी भी तरह़ एक मुश्त से ज़्यादा नहीं है।

और अगर (हम आप के इस दअ़्‌वे पर चलते है कि) आप (स.अ़.व.आ.) ने उसे सदक़ा के तौर पर (तमाम मुसलमानों के लिए) दिया है तो येह उससे कहीं ज़्यादा नाज़ुक और संगीन है क्योंकि मुसलमानों के अदना तरीन लोगों के लिए भी रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की ज़िन्दगी में और आप की वफ़ात के बअ़्‌द घर में दाख़िल होना नाफ़रमानी है सिवाय अ़ली (अ़.स.) और उनके बेटों के जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने उनके लिए जो कुछ ह़लाल किया है, उसे ह़लाल कर दिया है।

फिर मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने कहा: तुम अच्छी तरह़ जानते हो कि रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) ने अ़ली (अ़.स.) के दरवाज़े के अ़लावा मस्जिद के तमाम दरवाज़े बन्द करने का ह़ुक्म दिया था। अबू बक्र ने एक खिड़की के खोलने की दरख़ास्त की ताकि वोह उससे रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) को देख सकें, लेकिन आप ने इजाज़त देने से इन्कार कर दिया। और उससे आँह़ज़रत (स.अ़.व.आ.) के चचा अ़ब्बास भी नाराज़ थे (दरवाज़े बन्द करने के ह़ुक्म से)। फिर आप (स.अ़.व.आ.) ने ख़ुत्बा दिया (इस मसअले को ह़ल करने के लिए) और एअ़्‌लान किया कि यक़ीनन अल्लाह तआ़ला ने मूसा और हारून को हिदायत की है कि मिस्र में अपनी क़ौम के रहने के लिए घर ले लो और दोनों को ह़ुक्म दिया कि कोई रात न गुज़रे मस्जिद में नजासत की ह़ालत में और उसमें मूसा और हारून और उनकी औलाद  के अ़लावा कोई भी औ़रतों से तअ़ल्लुक़ नहीं रख सकता। और बेशक अ़ली (अ़.स.) को (मेरे लेह़ाज़ से) वही दर्जा ह़ासिल है जो हारून को मूसा के साथ ह़ासिल था और अ़ली (अ़.स.) की औलाद, हारून की औलाद की तरह़ है और येह उनके लिए जाएज़ है। अ़ली (अ़.स.) और उनकी औलाद के अ़लावा कोई शख़्स मस्जिदे नबवी में अपनी बीवी से तअ़ल्लुक़ात क़ाएम न करे और न ही उसमें नजासत की ह़ालत में सोए।

और तमाम ह़ाज़ेरीन ने कहा: येह बिल्कुन वैसा ही है जैसा आप ने कहा है।

मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने कहा: ऐ इब्ने अबी ख़ुदरा! तुम्हारा १/४ वाँ मज़हब ख़त्म हो गया है। येह मेरे आक़ा (अ़ली इब्ने अबी तालिब (अ़.स.)) के लिए एक फ़ज़ीलत है और इस फ़ज़ीलत में उनका कोई मुक़ाबला नहीं कर सकता, आप के आक़ा के लिए (ख़ानए रसूल (स.अ़.व.आ.) में मदफ़ून होना) ज़िल्लत-ओ-रुस्वाई है।

२) दूसरे दअ़्‌वे का रद्द – ग़ार में अबू बक्र

और जहाँ तक आप के इस दअ़्‌वे का तअ़ल्लुक़ है कि “वोह उन दोनों में से दूसरे हैं”, जब वोह दोनों ग़ार में थे, मुझे बताएँ कि क्या अल्लाह तआ़ला ने रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) और मोअ्‌मेनीन पर दूसरे मवाक़ेअ़्‌ पर अपना सुकून (सकीना) नाज़िल नहीं किया है?

इब्ने अबी ख़ुदरा ने कहा: हाँ।

मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने इशारा किया: फिर यक़ीनन अल्लाह तआ़ला ने आपके आक़ा को ग़ार के अन्दर सुकून से मह़रूम कर दिया है (और सिर्फ़ रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) को उससे नवाज़ा है)। जहाँ तक उस रात में अ़ली (अ़.स.) के मक़ाम का तअ़ल्लुक़ है तो येह रसूलुल्लाह के बिस्तर पर आप (स.अ़.व.आ.) के लिए अपने आप को क़ुर्बान करना था और येह ग़ार में आप के आक़ा के मक़ाम से अफ़ज़ल है।

लोगों ने इस्बात में कहा कि तुम ने सच कहा।

३) तीसरे दअ़्‌वे का रद्द – अबू बक्र को सिद्दीक़ कहा जाता है

और जहाँ तक आप का येह दअ़्‌वा है कि अबू बक्र उम्मत के दूसरे सच्चे (सिद्दीक़) हैं (सबसे पहले नबी (स.अ़.व.आ.) हैं), तो अल्लाह तआ़ला ने आप के आक़ा अबू बक्र पर अ़ली इब्ने अबी तालिब (अ़.स.) की तरह़ इस्तेग़फ़ार करना वाजिब कर दिया है, एअ़्‌लान करता है:

“और उनके बअ़्‌द आने वाले कहते हैं कि ऐ हमारे रब! हमें बख़्स दे और हमारे उन भाईयों को जो ईमान में हम से सबक़त ले गए…।”

(सूरह ह़श्र, आयत १०)

अबू बक्र (सिद्दीक़ होने) के बारे जो कुछ तुम दअ़्‌वा करते हो वोह बअ़्‌ज़ लोगों की तरफ़ से है। जहाँ तक क़ुरआन कहता है और किसी की सच्चाई की गवाही देता है तो ऐसी गवाही उससे अफ़ज़ल है जो तुम लोगों से सुनी हो।

और अ़ली (अ़.स.) ने बसरा के मिम्बर से एअ़्‌लान किया था कि मैं सिद्दीक़े अकबर हूँ। मैंने अबू बक्र के पहले ईमान लाया और उनके पहले (इस्लाम में) गवाही दी।

लोगों ने इस्बात में कहा कि तुम ने सच कहा।

४) चौथे दअ़्‌वे का रद्द – अबू बक्र ने नमाज़ पढ़ाई

फिर मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने एअ़्‌लान किया: जहाँ तक आप का येह दअ़्‌वा है कि अबू बक्र ने नमाज़ पढ़ाई जो आप के आक़ा अबू बक्र के लिए एक फ़ज़ीलत है, तो ह़क़ीक़त में येह एक नेकी से ज़्यादा क़ाबिले मलामत अ़मल होने के क़रीब है क्योंकि अगर येह रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) के ह़ुक्म से था तो आप (स.अ़.व.आ.) ने अबू बक्र को नमाज़ से क्यों मह़रूम किया? क्या तुम नहीं जानते कि जब अबू बक्र, मुसलमानों को नमाज़ पढ़ाने के लिए आगे बढ़े तो रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) (मस्जिद की तरफ़) निकले और ख़ुद मुसलमानों को नमाज़ पढ़ाई और अबू बक्र को रुख़्सत किया।

फिर येह सूरते ह़ाल सिर्फ़ दो इम्कानात का नतीजा होनी चाहिए। पहले (अबू बक्र की तरफ़ से) धोकादही का मुआ़मला था और जब रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) को येह मअ़्‌लूम हुआ तो बीमारी के बावजूद फ़ौरन मस्जिद की तरफ़ रवाना हुए और अबू बक्र को वहाँ से फ़ारिग़ कर दिया, चुनाँचे वफ़ात (शहादत) के बअ़्‌द रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की बात, क़ौम के लिए उनकी ख़ेलाफ़त की दलील नहीं बननी चाहिए और लोगों के पास उनको ख़लीफ़ा बनाने के लिए कोई उ़ज़्र नहीं होना चाहिए।

या (दूसरे मन्ज़रनामे में) ख़ुद रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) ने उसे ह़ुक्म दिया और येह सूरह बराअत (तौबा) के पहुँचाने के मुतरादिफ़ है, जिस का आप (स.अ़.व.आ.) ने इब्तेदा में अबू बक्र पर इल्ज़ाम लगाया था। फिर जिब्रईल (स.अ़.व.आ.) नाज़िल हुए और ह़ुक्म दिया कि इसे आप या आप में से कोई शख़्स पहुँचा दे और दूसरा कोई ऐसा नहीं कर सकता।

पैग़म्बरे अकरम (स.अ़.व.आ.) ने अ़ली (अ़.स.) को अबू बक्र को तलाश करने के लिए भेजा और उनसे सूरह ले लिया और उन्हें सूरह पहुँचाने से रोक दिया।

दोनों ह़ालतों में नमाज़ की इमामत के साथ भी यही क़िस्सा है, आप के आक़ा की मज़म्मत है क्योंकि उसका पोशीदा इरादा ज़ाहिर हो चुका है। येह इस बात का वाज़ेह़ सबूत है की रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) के बअ़्‌द वोह ख़ेलाफ़त के मुस्तह़क़ नहीं हैं और न आप को दीन के किसी काम के लिए मुक़र्रर किया गया है।

लोगों ने कहा: तुम ने सच कहा।

मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने एअ़्‌लान किया कि: ऐ इब्ने अबी ख़ुदरा! वहाँ आप का पूरा दीन चला गया और आप ने (अपने आक़ा के बारे में) हर उस चीज़ की तज़लील की है।

५) क़ुरआन से अ़ली (अ़.स.) की बरतरी का सबूत

लोग मोअ्‌मिन अत्ताक़ की तरफ़ मुतवज्जेह हुए। अब में अ़ली (अ़.स.) की इताअ़त के दअ़्‌वे के ह़वाले से अपली दलील पेश करता हूँ।

मोअ्‌निन अत्ताक़ ने एअ़्‌लान किया: जहाँ तक क़ुरआन का तअ़ल्लुक़ है वोह अल्लाह के इस फ़रमान में अ़ली (अ़.स.) को बयान करता है:

“ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ रहो।”

(सूरह तौबा, आयत ११९)

और हम अ़ली (अ़.स.) को क़ुरआन में इस ख़ुसूसीयत के साथ पाते हैं:

“और सब्र करने वाले मुसीबत और सख़्ती में और झगड़ों के वक़्त और यहीं वोह हैं जो सच्चे हैं और यही परहेज़गार हैं।”

(सूरह बक़रा, आयत ११७)

मअ़्‌नी (मुश्किल में मुब्तेला मरीज़) जंग और मुश्किल

और क़ौम का इज्माअ़्‌ है कि येह अ़ली (अ़.स.) के बारे में है और वोह इस मुआ़मले में दूसरों को छोड़कर सबसे आगे हैं क्योंकि वोह कभी भी मैदाने जंग से इस तरह़ फ़रार नहीं हुए जैसे दूसरे फ़रार हुए हैं।

लोगों ने इस्बात में कहा कि तुम ने सच कहा।

६) सुन्नत से अ़ली (अ़.स.) का सरपरस्त होने का सबूत

मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा: जहाँ तक रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की तरफ़ से (अ़ली (अ़.स.) के बतौरे वली की) ह़दीस का तअ़ल्लुक़ है तो आप (स.अ़.व.आ.) ने एअ़्‌लान किया:

“मैं आप के दरमियान अपने पीछे दो भारी चीज़ें छोड़े जा रहा हूँ। जब तक तुम उनको मज़बूती से थामे रहोगे तुम मेरे बअ़्‌द कभी गुमराह न होगे यअ़्‌नी किताबुल्लाह और मेरी औलाद, मेरे अह्लेबैत से। येह इसलिए है कि जब तक वोह मुझसे ह़ौज़ पर नहीं मिलेंगे वोह एक दूसरे से कभी अलग नहीं होंगे।”

और रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) का फ़रमान है:

“तुम्हारे दरमियान मेरे अह्लेबैत की मिसाल नूह़ की कश्ती की सी है, जो उसमें सवार हुआ, नजात पा गया और जो उससे पीछे हट गया, वोह गर्क़ हो गया और जो उससे आगे निकल गया, वोह मुन्ह़रिफ़ हो गया और जो उससे लगा रहा, वोह कामियाब हो गया।”

फिर अह्लेबैत (अ़.स.) से लगाव आँह़ज़रत (स.अ़.व.आ.) की गवाही के मुताबिक़ हेदायत है और दूसरों से लगाव इन्ह़ेराफ़ है।

लोगों ने इस्बात में कहा कि तुम ने सच कहा।

मोअ्‌मिन अत्ताक़ ने अपनी बात को जारी रखा: जहाँ तक अ़क़्ल की दलील (अ़ली (अ़.स.) की फ़ज़ीलत के बारे में) का तअ़ल्लुक़ है, यक़ीनन तमाम लोग एक आ़लिम के ह़ुक्म के आगे सरे तस्लीम ख़म करने को तर्जीह़ देते हैं और हम इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि अ़ली (अ़.स.), पैग़म्बरे अकरम (स.अ़.व.आ.) के अस्ह़ाब में सबसे ज़्यादा आ़लिम थे। सब लोग उन से अपने अपने सवालात करते थे और उनके मोह़ताज थे और वोह उन सबसे बेनियाज़ थे। और येह क़ुरआन से वाज़ेह़ और साबित है जब अल्लाह तआ़ला फ़रमाता है:

“तो क्या वोह जो ह़क़ की तरफ़ रह़नुमाई करता है, उसकी पैरवी करने का ज़्यादा ह़क़दार है, या वोह जो ख़ुद राहे रास्त पर नहीं चलता जब तक कि उसे हिदायत न मिले। फिर तुम्हें क्या हुआ? तुम कैसे फ़ैसला करते हो?”

(सूरह यूनुस, आयत ३५)

रवायत है कि इससे ज़्यादा कामियाब कोई दिन नहीं था और बहुत से उ़लमा इस बह़्स की बदौलत शीआ़ ह़ल्क़े में दाख़िल हुए।

noorehaq

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