सवाल: क्या ग़दीर का शुमार इस्लामी ईदों में होता है या यह ईद सिर्फ़ शीओं से मख़्सूस है?

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जवाब: यह ईद शीओं से मख़्सूस नहीं है, अगरचे शीआ इस ईद से बहोत ज़्यादा लगाओ रखते हैं, बल्कि मुसलमानों के दूसरे फ़िर्क़े भी इस रोज़ को ईद जानते हैं।

अबू रैह़ान बैरूनी ने किताब “अलआसारू बाक़ियतु अनिल कुरूनिल ख़ालिय”[1] में इसको अह्ले इस्लाम की ईदों  में शुमार किया है।

इब्ने तल्ह़ा शाफ़ई ने किताब “मतालिबुस् सुउल”[2] में लिखा है:

अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) ने अपने अश्आर में रोज़े ग़दीरे ख़ुम का ज़िक्र किया है और इस रोज़ को रोज़े ईद   मनाया जाता है। क्योंकि इस रोज़ पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) को एक बलन्द मर्तबे से नवाज़ा है और उनको इस का शरफ़ बख़्शा है।

और दूसरों को यह शरफ़ हासिल नहीं मिला है।

इसके अलावा वह कहते हैं:

लफ़्ज़ “मौला” के जो माना रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) के लिए मुम्किन हैं वही माना रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के लिए क़रार दिए हैं और यह बहोत बड़ा मर्तबा है, जो आप को अता किया गया है और किसी दूसरे को अता नहीं किया गया, इसी वजह से इस दिन को ईद और हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के चाहने वालों के लिए ख़ूशी का दिन क़रार दिया गया है।[3]

इब्ने ख़लकान कि किताब “वफ़्यात”[4] का मुतालेआ करने से मालूम होता है कि मुसलमानों के दरमियान इस दिन को ईद का दिन क़रार देने पर ओलामा का इत्तेफ़ाक़ है।

मस्ऊदी ने हदीसे ग़दीर को ज़िक्र करने के बाद कहा है:

हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) की औलाद और उनके शीआ इस दिन की अज़मत के का़एल हैं।[5]

निज़ सालबी ने “सेमारुल क़ुलूब”[6] में शबे ईदे ग़दीर को उम्मते इस्लामी के नज़दीक बुज़ुर्ग रातों में शुमार किया है और कहा है: शबे ग़दीर वह शब है जिसके अगले रोज़ पैगंबरे अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने ग़दीरे ख़ुम में ऊँटों के कजावों पर ख़ुतबा दिया और अपने ख़ुतबे में फ़रमाया:

मन कुन्तो मोलाहु फ़हाज़ा अलीयुन मौलाहु अल्लाहुम्मा वाले मन वालाहु व आदे मन आदाहु वन्सुर मन नसरहु वख़्ज़ुल मन ख़ज़लहु।

इस वजह से शीआ इस रात को बुज़ुर्ग शुमार करते हैं और इस में इबादत अन्जाम देते हैं।

ग़दीर के ईद होने की दलील यह भी है कि शेख़ैन (अबूबक्र और उमर), अज़्वाजे पैगंबर और दूसरे सहाबा ने पैगंबर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) के हुक्म से अमीरुल मोमेनीन अली (अलैहिस्सलाम) को मुबारकबाद दी, और मुबारकबाद देना ईद और ख़ुशीयों को दिनों से मख़्सूस है।[7]

[1] अलआसारुल बाक़ियोतु अनिल क़ुरूनिल ख़ालिय, सफ़्ह 334

[2] मतालिबुस सुउल, 53, सफ़्ह 16

[3] मद्रके पिशीन 56

[4] वफ़ायतुल आयान, जिल्द 1, सफ़्ह 223 (1/180, शुमारा 74 – 5/23 शुमारा 728)

[5] अत्तम्बीहु वलअश्राफ़, 221 (सफ़्ह 221-222)

[6] सेमारुल क़ुलूब 511 (सफ़्ह 636, शुमारा 1068)

[7] शफ़ीई माज़न्दरानी / गज़ीदएई जामेअ अज़ अलग़दीर, सफ़्ह 76

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