एक मर्तबा हारून रशीद ने अपने एक मुशीर जाफ़र बिन यह्या बरमक्की से कहा कि मैं चाहता हूँ कि छुपकर मुतकल्लेमीन (कलाम करनेवाले) की बात सुनूँ ताकि वह खुलकर अपने दलाएल पेश करें और जैसे चाहें आपस में मुबाहिसा करें (ताकि मैं उनकी हक़ीक़त से वाक़िफ़ हो सकूँ)। पस जाफ़र ने तमाम मुतकल्लमीन को अपने घर पर हाज़िर होने का हुक्म दिया। सारे मुतकल्लेमीन तामीले हुक्म (फ़रमाबरदारी) के लिए जाफ़र के घर पहूँच गए। हारून भी उस मजलिस में पहले से ही पर्दे के पीछे इस तरह बैठ गया कि हाज़ेरीन उसको न देख सकें। जबकी वह उन सबकी बातों को पूरी तरह से सुन सके। लोग हिशाम बिन हकम का इन्तेज़ार कर ही रहे थे कि हिशाम दाख़िल हुए और जाफ़र को ख़ुसूसी सलाम करने के बजाए तमाम हाज़ेरीन को मुख़ातिब करके सलाम किया फ़िर अपनी जगह पर बैठ गए।
गुफ़्तगू शुरू होते ही उनमें से एख शख्स ने हिशाम से सवाल किया, तुम अली को ख़लिफ़ा पर किस तरह फ़ज़िलत दे सकते हो, जबकि क़ुरआन में उनके बारे में आयत है कि ‘सानीयस्नैने इज़ हुमा फ़िल ग़ारे इज़ यक़ूलू ले साहेबेही ला तहज़न इन्नल्लाह मअना।’ (सूरए तौबा, आयत 40) वह ग़ार में रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) के साथी थे और उनके लिए रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने फ़रमाया, ग़म न करो अल्लाह हमारे साथ है। इस पर हिशाम ने सवाल किया, यह बताओ कि उस वक्त अबूबक्र का हुज़्न अल्लाह की रिज़ा के लिए था या किसी और वजह से था? वह शख़्स लाजवाब था, और ख़ामोश रहा। हिशाम ने बात जारी करते हुए कहा अगर उनका महज़ून होना अल्लाह की रिज़ा के लिए था तो रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने ‘ला तहज़न’ कहकर उसे हुज़्न से क्यों रोका और अगर यह हुज़्न ख़ुदा के लिए नहीं था तो फ़िर यह कोई फ़ख़्र या फ़ज़ीलत की बात ही नहीं है। तुम जानते हो न कि अल्लाह का फ़रमान है – फ अन्ज़लल्लाहू सकीनतहू अला रसूलेही व अलल मोमेनीन – (सूरए फ़त्ह, आय़त 26) फिर अल्लाह ने अपने रसूल पर और मोमिनो पर सकीना नाज़िल फ़रमाया है। जबकि इस आय़त में सकीना सिर्फ़ रसूल पर ही नाज़िल होने की बात आई है। जिस रसूल के साथी पर अल्लाह सकीना नही नाज़िल करता वह फ़ज़ीलत का कैसे हामिल हो सकता है।
इसके अलावा यह क़ौले रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) जो अवाम की ज़बान पर है और जिस की तसदीक़ तुम भी करते हो और हम भी करते है कि आँ हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने फ़रमाया जन्नत चार लोगों की मुश्ताक़ है, अली इबने अबी तालिब (अलैहिमस्सलाम), मिक़दाद बिन अलअस्वद, अम्मार बिन यासिर और अबूज़र। इस फ़ज़ीलत में हम देखते हैं कि हमारे मौला शामिल हैं। जबकि तुम्हारे ख़लीफ़ा शामिल नहीं है। इसलिए हम अली (अलैहिस्सलाम) को उनसे अफ़ज़ल मानते हैं।
और यह भी मश्हूर है कि जिसकी तुम भी तस्दीक़ करते है कि इस्लाम को बचाने वाले मुजाहिद चार अश्ख़ास हैं, अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस्सलाम), ज़ुबैर बिन अवाम, अबू अन्सारी और सलमाने फ़ारसी। इस फ़ज़िलत में भी हम देखते हैं कि हमारे मौला शामिल हैं, जबकि तुम्हारे ख़लीफ़ा का इसमें नाम नही है। इसलिए हम अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) को तुम्हारे ख़लिफ़ा से अफ़्ज़ल समझते हैं।
और इस बात की भी शोहरत है और हम दोनों इस बात की तस्दीक़ करते हैं कि क़ुरआन के का़री चार अश्ख़ास हैं, अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद, उबई बिन काब और ज़ैद बिन साबित। इस फ़ज़िलत में भी हम देखते हैं कि हमारे मौला शामिल हैं, जबकि तुम्हारे ख़लीफ़ा का इसमें नाम नही है। इसलिए हम उनको तुम्हारे ख़लीफ़ा से अफ़्ज़ल समझते हैं।
लोगों में यह भी मश्हूर है और हम दोनों इसकी तस्दीक़ करते हैं कि मुतह्हेरीन चार लोग हैं।, अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस्सलाम), फ़ातेमा (अलैहास्सलाम), हसन (अलैहिस्सलाम) और हुसैन (अलैहिस्सलाम)। इस फ़ज़िलत में भी हम देखते हैं कि हमारे मौला शामिल है, जबकि तुम्हारे ख़लीफ़ा का इसमें नाम नही है। इसलिए हम उनको तुम्हारे ख़लीफ़ा से अफ़्ज़ल समझते हैं।
अवाम (लोगों) में यह बात भी मश्हूर है और हम सब उसकी तस्दीक़ करते हैं कि अबरार चार लोग हैं, अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस्सलाम), फ़ात्मा (अलैहास्सलाम), हसन (अलैहिस्सलाम) और हुसैन (अलैहिस्सलाम)। इस फ़ज़िलत में भी हम देखते हैं कि हमारे मौला शामिल है, जबकि तुम्हारे ख़लीफ़ा का इसमें नाम नहीं है। इसलिए हम उनको तुम्हारे ख़लीफ़ा से अफ़्ज़ल समझते हैं।
यह बात भी शोहरत की हामिल है और हम दोनों इसकी तस्दीक़ करते हैं कि शोहदा चार लोग हैं, अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस्सलाम), जाफ़रे तैय्यार, हम्ज़ा और उबैदा बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब। इस फ़ज़िलत में भी हम देखते हैं कि हमारे मौला शामिल हैं, जबकि तुम्हारे ख़लीफ़ा का इसमें नाम नही है। इसलिए हम उनको तुम्हारे ख़लीफ़ा से अफ़्ज़ल समझते हैं।
यह सुनकर हारून तिलमिला गया और पर्दे से बाहर आ गया। उस ने तमाम लोगों को और जाफर को वहाँ से बाहर जाने का हुक्म दिया और हिशाम के बारे में सवाल किया कि यह कौन शख़्स है? इरादा था कि हिशाम को क़त्ल कर दे, मगर हुकूमते वक़्त को क्या ख़बर कि यह हिशाम है। जिन की ताईदो नुस्रत ख़ुदाए का़दिरो तवाना कर रहा है और वह दुश्मन के दरबार में ही हक़ को आश्कार करता है।
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