हेशाम बिन हकम और इमामत का देफ़ा

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हेशाम बिन हकम और इमामत का देफ़ा

तशय्यो पर इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के जो एहसानात हैं उनमें से एक एहसान यह भी है कि आप ने कुछ ऐसे अफ़राद की तर्बि‍यत फ़रमाई कि जिनकी वजह से सही दीन को अवाम में पाएदारी मिली है। इमाम शशुम के इन्हीं अस्हाबे किराम की ख़िदमात की वजह से दीन की सही तस्वीर लोगों के दरमियान आज भी जिंदा है। आपका कोई शागिर्द क़ुरआन की तफ़सीर का आलिम हुआ, तो कोई इल्मे कलाम में माहिर हुआ, तो कोई फिक़्ह के उसूल में महारत रखता था। अल-ग़रज़ दीन के तमाम शोबों में आप ने अपने शागिर्दों को ऐसी तर्बि‍यत दी कि उनकी वजह से आज तशय्यो के पास इल्म का एक कीमती ख़ज़ाना मौजूद है। इन तमाम जलीलुल-क़द्र अस्हाब में एक नाम हेशाम बिन हकम का है। हेशाम बिन हकम अल-किंदी, कूफ़े के रहने वाले थे और उनका कमाल यह था कि इमामत व विलायत के मौज़ू पर बड़े बड़े उलमा से मुनाज़रे करते उनको या तो ख़ामोश कर देते या इमामत का क़ाएल कर देते थे। हेशाम की ज़हानत और फ़ेरासत का यह आलम था कि इमाम जाफ़र सादिक़़ अलैहिस्सलाम ने उनको इजाज़त दी थी कि वह तब्लीग़े इमामत और देफ़ाए विलायत के लिए मुख़ालेफ़ीन से मुबाहिसा करें।

हेशाम बिन हकम के मुनाज़रे शियों के जय्यद उलमा ने अपनी तालीफ़ात में नक़्ल किए हैं। मुंदरजा ज़ैल वाक़ेया मोतबर किताबों में मसलन उसूले काफ़ी, एहतेजाज, बिहारुल अनवार वग़ैरा में मामूली कम व बेश फ़र्क़ के साथ नक़्ल हुआ है। एक रोज़ इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम अपने क़रीबी अस्हाब के साथ तशरीफ़ फ़रमा थे कि आप ने हेशाम से ख़िताब करते हुए फ़रमाया ऐ हेशाम, तुमसे अम्र बिन उबैद से बसरा में क्या गुफ़्तगु हुई थी? बयान करो

हेशाम : ऐ फ़रज़न्दे रसूल, आपके सामने बयान करने में शरम महसूस करता हूँ।

इमाम जाफ़रे सादिक़ : क्या तुम अपने इमाम की इताअत नहीं करोगे?

हेशाम : क्यों नही अभी बयान करता हूँ मौला!

अम्र बिन उबैद की बसरा में बड़ी शोहरत थी। वह अपनी जमाअत के सामने तक़रीरें किया करता था। एक रोज़ वह मस्जिद में बैठा था। लोग उसको घेरे हुए थे। वह उनके सवालात के जवाबात दे रहा था। मैंने भी उठकर उस से सवाल करने की इजाज़त मांगी। इजाज़त मिलने पर मैंने सवाल किया।

हेशाम : क्या आपकी आँखें हैं?

अम्र : यह कैसा अहमक़ाना सवाल है।

हेशाम : जी, मेरे ऐसे ही सवालात हैं

अम्र : हाँ मेरी आँखें हैं।

हेशाम : आप उनसे क्या काम लेते हैं?

अम्र : रंग वग़ैरा को उनसे देखता हूँ।

हेशाम : क्या आपकी नाक है?

अम्र : हाँ है।

हेशाम : आप इस से क्या काम लेते हैं?

अम्र : मैं इससे ख़ुशबू और बदबू मालूम करता हूँ।

हेशाम : आप के पास कान हैं?

अम्र : हाँ, हैं

हेशाम : इससे क्या काम लेते हैं?

अम्र : मैं इस से आवाजें सुनता हूँ

हेशाम : क्या आपके पास दिल है?

अम्र : हाँ हैं।

हेशाम : तो आप इस से क्या काम लेते हैं?

अम्र : इस के ज़रिए इन चीज़ों में जो आज़ा व जवारेह पर वारिद होती हैं तमीज़ करता हूँ।

हेशाम : इन आज़ा के सही व सालिम होते हुए यह दिल के क्यों मुहताज हैं?

अम्र : यह आज़ा जब अपने काम में तरद्दुद का शिकार होते हैं तो उसे दिल के सामने पेश करते हैं वह शुबह को दूर कर देता है।

हेशाम : इस का मतलब यह हुआ कि ख़ुदा ने दिल को इन्सान के जिस्म में इसलिए रखा है कि जब कभी आज़ा व जवारेह में इख़्तेलाफ़ या शुबह हो तो वह फैसला कर देता है।

अम्र : बेशक बेशक

हेशाम : जब ख़ुदा ने आज़ा व जवारेह को तन्हा और आज़ाद नहीं छोड़ा, बल्कि उनके लिए एक इमाम मुक़र्रर किया है तो इतनी बड़ी कायनात को बग़ैर इमाम के कैसे छोड़ देगा?

हेशाम : मेरी बातें सुनकर अम्र बिन उबैद दंग रह गया और देर तक वह मेरी तरफ़ देखता रहा फिर कहने लगा

अम्र : क्या तुम हेशाम हो?

हेशाम : नहीं

अम्र : हेशाम के दोस्तों में से हो?

हेशाम : नहीं

अम्र : अच्छा कहाँ के रहने वाले हो?

हेशाम : कूफे का रहने वाला हूँ।

अम्र : फिर तो तुम हेशाम ही हो।

हेशाम : उसे यक़ीन हो गया कि मैं हेशाम हूँ, तो अपनी जगह मुझे दे दी। और जब तक मैं बैठा रहा कोई कलाम नही किया।

इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम: मरहबा हेशाम मरहबा। यह तुमने कहाँ से सीखा है?

हेशाम : मौला सब आप ही से सीखा है बस हमने तर्तीब देकर बयान कर दिया है।

इमाम सादिक़ अ.स.: हेशाम ब-खुदा इब्राहीम व मूसा अलैहिमस्सलाम के सहीफ़ों में भी यही लिखा हुआ है।

इस वाक़ए से जनाब हेशाम बिन हकम की क़द्र व मंज़िलत का पता चलता है। इमाम अलैहिस्सलाम ने न सिर्फ़ यह कि उनकी तारीफ़ और हौसला अफ़ज़ाई फ़रमाई बल्कि उनके इल्म का इल्हामी होने की तरफ़ भी इशारा किया है। इमाम अलैहिस्सलाम का यह ज़ाहिर करना कि यह बातें अंबिया अलैहिमुस्सलाम के सहीफ़ों में मौजूद हैं इसी बात की तरफ़ इशारा करता है।

अल्लाह हम सबक़ो मुदाफ़ए विलायत अमीरुल-मोमेनीन अलैहिस्सलाम में क़रार दे।

आमीन।

noorehaq

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