शहादते अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) की ख़बर और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) का गिरिया

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अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) का रोज़े शहादत आलमें इस्लाम के लिए सबसे ज़्यादा मुसीबत वाला रोज़ रहा है। यह वह सानेहा था जिसने इस्लाम में कभी पुर न होने वाला ख़ला पैदा किया है। यब वह मुसीबत थी जिसने अव्वलीनो आख़ेरीन सबको ग़मज़दा बना दिया। हालांकि यब वाक़ेआ रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) की रहलत के बाद वाक़ेआ हुआ मगर उसकी ख़बर ने आँ हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) को इतना ग़मगीन किया कि आपने शिद्दत से इस पर गिरिया फ़रमाया।

रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) की शहादत की ख़बर दी है। जब जंगे खन्दक़ में अम्र इब्ने अब्दे वुद ने इमामे आली मक़ाम को ज़ख़्मी किया था, रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने आपकी पेशानी को बांधा और फ़रमाया:

मैं उस वक़्त कहाँ रहूँगा जब तुम्हारी दाढी को ख़ून से रंगीन किया जाएगा। (मनाक़िब, जिल्द 2, सफ़्ह 16)

जंगे ओहद में आपके (अलैहिस्सलाम) बदन पर सत्तर ज़ख़्म लगे, इमाम अली (अलैहिस्सलाम) ने रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) से अर्ज़ की: हम्ज़ा और दूसरे लोग शहीद हो गए लेकिन शहादत मुझे नसीब नहीं हुई। उस वक़्त रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने फ़रमाया: अली तुम भी शहीद होगे, लेकिन तुम शहादत पर किस तरह सब्र करोगे।

एक और रिवायत में ख़ुद अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) नक़्ल करते हैं कि सरवरे कायनात (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) उनसे माहे रमज़ानुल मुबारक की फ़ज़ीलत बयान करते हुए गिरिया करने लगे। जब मौला अली (अलैहिस्सलाम) ने आँ हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) से उनके रोने का सबब पुछा तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने फ़रमाया:

“या अलीयू, अबक़ी लिमा युसतहल्लो मिनका फ़ी हाज़श्शहरे कअन्नी बिक व अन्त तुसल्ली लेरब्बेके वक़द इंबअस अश्क़ा अव्वलीन वल आख़ेरीन शक़ीक़ो आक़ेरे नाक़ते समूद फ़ज़रबक ज़र्बतन अला क़र्नेका फ़ख़ज़ब निहा लह्यतक। क़ाल अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) या रसूलल्लाह व ज़ालेक फ़ि सलामतिन मिन दीनी। फ़क़ाल (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) फ़ी सलामतिन मिन दीनेक सुम्म क़ाल (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) या अली मन क़तलक फ़क़द क़तलनी वमन अब्ग़ज़क फ़क़द अब्ग़ज़नी वमन सब्बक फ़क़द सब्बनी लेअन्नक मिन्नी कनफ़्सी, रूहोक मिन रूही व तीनतोक मिन तीनती, इन्नल्लाह तबारक व तआला ख़लक़नी वइय्याक वस्तफ़ानी वइय्याक वख़्तारनी लिन्नुबुव्वते वख़्तारक लिलइमामते फ़मन अन्कर इमामतक फ़क़द अन्कर नबुव्वती….”  (बिहारुल अनवार, जिल्द 42, सफ़्ह 192)

ऐ अली मैं इस बात को रो रहा हूँ कि तुम पर इस महीने में ऐसा वक़्त आएगा कि तुम हालते नमाज़ में होगे और अव्वलीनो आख़ेरीन में से शक़ी तरीन शख़्स तुम्हारे सर पर ज़र्बत लगाएगा। अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) ने सवाल किया: या रसूलल्लाह! क्या उस वक़्त मेरा दीन सलामत होगा?  आँ हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने जवाब दिया: हाँ, तुम्हारा दीन सलामत होगा। आपने मज़ीद इरशाद फ़रमाया: ऐ अली! जिसने तुमको क़त्ल किया उसने मुझे क़त्ल किया, जिसने तुमसे बुग़्ज़ किया उसने मुझसे बुग़्ज़ किया, जिसने तुम्हें गाली दी उसने मुझे गाली दी, क्योंकि तुमको मुझसे वैसी निस्बत है जैसे तुम्हारी रूह को मेरी रूह से निस्बत है। यानी तुम्हारी रूह मेरी रूह से है। और तुम्हारी तीनत मेरी तीनत से बनी है। यक़ीनन अल्लाह तआला मे तुम्हें और मुझे एक साथ पैदा किया फ़िर तुमको इमामत के लिए चुन लिया जिस तरह उसने मुझे नुबुव्वत के लिए चुना है। पस जिसने तुम्हारी इमामत का इनकार किया उसने मेरी नुबुव्वत का इनकार किया।”

उन्नीस रमज़ानुल मुबारक को सुबह में जब अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) को इब्ने मुलजिम मलऊन ने ज़र्बत लगाई तो उसने सिर्फ़ मौलाए काएनात (अलैहिस्सलाम) को ज़ख़्मी नहीं किया बल्कि उसमे ख़ुद रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) को ज़ख़्मी किया था। वही वक़्त था कि आसमान में मुनादी ने निदा दी थी “तहद्दमत वल्लाहे अर्कानल हुदा” ख़ुदा की क़सम अरकाने हिदायत मुन्हदिम (ढह गए) हो गए। अल्लाहुम्मल अन क़तलत अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम)। आमीन

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