मुन्तक़िमे खूने ज़हराः इमाम मेहदी (अ.स.)

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‘पस हमने जुर्म करने वालों से इंतेक़ाम लिया। मोमिनों का हम पर हक़ है के हम उनकी मदद करें।’ (कु़रआन मजीद)

इमाम मेहदी की एक अहम खु़सूसियत ये है कि आप (अ.स.) अल्लाह की ज़मीन पर अल्लाह की हूकूमत कायम करेंगें। आप (अ.स.) की सरपरस्ती में ज़मीन पर ख़ुदा के नेक बन्दों की हुकूमत होगी। सारी दुनिया पर इस्लाम का परचम लहरायेगा। आप(अ.स.) की हुकूमत के ज़रिये ख़ुदा अपने उन वादों को पूरा करेगा जो उसने ‘मुसतज़अफीन’ (कमज़ोर लोगों)  और मोमेनीन से किया है। इन बातों पर तमाम उम्मते मुसलेमा का इत्तेफाक़ है मगर मज़हबे शिया का ये अकी़दा भी है कि हज़रत वलीए असर बाद अज़ ज़ूहूर खु़दा की उस सुन्नत पर भी अमल करेंगें जिस का ज़िक्र कुरआन की चार आयतों में हुआ है।’’

इस उम्मत ने भी गुज़िश्ता उम्मतों की तरह ज़ुल्मो बरबरियत किया है। खु़सूसन आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) के साथ बहुत ज़ुल्म हुआ है। उनके जवानों और बूढ़ों को बे-जुर्म व ख़ता क़त्ल किया गया, यहाँ तक के दुध पीते बच्चों को भी क़त्ल किया गया । उन की औरतों को असीर किया गया। उन्हें शहर बदर किया गया। एक शायर ने किसी मुशायरे में ये शेर पढ कर सब को रूला दिया।

“इस तरह हमको सताते हैं ज़माने वाले”

“जैसे हम भी हों मोहम्मद(स.अ.व.व.) के घराने वाले’

तो क्या ख़ुदा अपने हबीब की अवलाद पर होने वाले ज़ुल्म का बदला न लेगा ?

यक़ीनन ये बदला खु़दा हज़रत मेहदी (अ.त.फ.) के ज़रिये से लेगा।

वो तमाम मज़ालिम जो खा़नदाने रिसालत ने उम्मत के हाथों बरदाशत किये हैं उनमें सब से ज़्यादा दर्दनाक और शदीद मुसीबत रसूल की बेटी की है, जिसको सरवरे कायनात अपने दिल व जान का टुकडा बताते रहे उसी के साथ उम्मत के बदतरीन अफराद ने वो सुलूक किया जिसे इसलाम की तारीख़ कभी फ़रामोश नही कर सकती। उन लोगों ने रसूल की पाराए जिगर को इस क़दर जिस्मानी अज़ीयत पहुँचाई के इसी के सबब आप (अ.स.) की शहादत वाक़ेय हुई। अपने बाबा की रहलत के बाद जितने दिन भी जनाबे फा़तेमा ज़हरा (अ.स.) ज़िन्दा रहीं रोती ही रहीं। यही सबब है कि जब भी किसी इमाम से किसी सवाल करने वाले ने इमामे क़ायम के ज़ूहूर के बारे में सवाल किया तो इमाम (अ.स.) को अपनी जद्दा पर टूटने वाले मज़ालिम याद आ गये।

इमाम बाकि़र (अ.स.) के एक सहाबी जिन का नाम अबु जारूद है फ़रमाते हैं कि मैंने हज़रत से सवाल किया: ( इमाम ) क़ायम कब क़याम करेंगे?

इमाम (अ.स.) ने एक तवील जवाब दिया जिस में जनाबे सय्यदा (अ.स.) की मुसीबतों का ज़िक्र किया और फिर आप(अ.स.) ने कहाः ‘‘जिन लकड़ियों से बैते फा़तेमा को जलाया गया था वो आज भी हमारे पास मौजूद हैं….’’ उन्हीं लकड़ियों से उन दोनों को जलाया जायेगा।

(दलायलुल इमामह , सफा़ 242)

इसी तरह की एक और तवील रिवायत जो इमामे सादिक़ (अ.स.) से नक़्ल हुई है। इस रिवायत में छटे इमाम के एक क़रीबी सहाबी मुफज़्ज़ल बिन उमर ने इमाम मुन्तज़र के ज़ूहूर के बारे में सवाल किया। उनके सवाल के जवाब में भी इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) ने जनाबे सय्यदा पर होने वाले तमाम मसायब की रूदाद मोफ़स्सल बयान की के किस तरह उसने आप(अ.स.) के घर पर हमला किया, दरवाज़े को आग लगाई , रसूल की बेटी को किस तरह ज़रब लगा कर ज़ख़्मी किया और इस ज़रब की वजह से जनाबे सय्यदा का हमल साकित हो गया और यही आप (अ.स.) की शहादत का सबब बना ।

(अलअबरार, 652, अवालेमुल उलूम जि. 11 सफा 441)

इसी तरह की मज़ीद रिवायात किताब ‘मासाअतुज़ ज़हरा’ में मरकू़म हैं जिनको मज़मून की तवालत की खा़तिर यहाँ बयान नहीं किया जा रहा है। इन रिवायात से दो बातों का इन्केशाफ़ होता है एक तो ये कि इमामे क़ायम के क़याम से जो चीज़े वाबस्ता हैं उनमें अइम्माए मासूमीन (अ.स.) के नज़दीक ज़यादा पसंदीदा बात ये है के जनाबे सय्यदा (अ.स.) के क़ातिल से उनके ख़ून का बदला लिया जायेगा। ऊपर दी हुईं दोनों रिवायतों की तफ़सील पढ़ने पर इस बात का बख़ूबी अंदाज़ा हो जाता है कि रावी का सवाल क्या़म के वक्त के मुताल्लिक़ था और इमामे मासूम ने जवाब में खू़ने ज़हरा के इंतेकाम का ज़िक्र किया है।

दूसरी अहम बात ये है कि हूकूमतों के खौफ के सबब दुख़्तरे रसूल की मूसीबतों का बयान नहीं हो पाता था। अईम्मा (अ.स.) ने इन मज़ालिम का ज़िक्र सिर्फ अपने क़रीबी असहाब से ही किया है। ये भी एक अज़ीम मुसीबत है कि आज तक दुख़तरे रसूल के क़ातिलों का जुर्म न खुल कर बयान किया जा सकता है और न ही इनके क़ातिलों पर खुल कर लानत की जा सकती है।

खु़दाया मुंतक़िमे खू़ने ज़हरा के ज़ूहूर में ताजील अता फ़रमा।

या रब्बा मोहम्मद ! अज्जिल फ़रजा आले मोहम्मद

या रब्बा मोहम्मद ! एहफिज़ ग़यबते मोहम्मद

या रब्बा मोहम्मद ! इनतक़िम ले इब्नते  मोहम्मद।

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