आस़ारे फ़ातेमी: मुस्ह़फे फातेमा (स.अ.)

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इन्न हाज़ा लफीस सोहुफिल ऊला, सोहुफे इब्राहीम व मूसा (सूरए आअला 18-19)

यक़ीनन यह गुजिशता सहीफों में भी मरक़ूम है। इब्राहीम (अ.स.) और मूसा (अ.स.) के सह़ीफों में (मौजूद है)।

खुदावन्दे आलम ने इन्सानो की हिदायत के लिए बहुत से ज़राए बनाये हैं। उन में दो तरह की ह़ुज्जते.हैं, एक ह़ुज्जते-बातिन,जो खुद इन्सान का नफ्स है, उसकी अक्ल है और दूसरे ह़ुज्जते-ज़ाहिर,जो अंबियाए-केराम (अ.स.) हैं। खुदा ने इन्सानों की हिदायत के लिए बस इतने पर ही इक्तिफा नही  किया,बल्कि उसनेअपने नबियो के ज़रिए इन्सानो की रहनुमाई के लिए किताबें और सहीफे भी नाज़िल फरमाए। उन में से बाज़ सहीफों में हिदायात और नसीहतें थीं, तो बाज़ में उन हिदायात औऱ नसाएह के साथ-साथ अहेकामे-शरीअह भी थे। उन सहीफों की अहमियत इस वजह से तो है ही कि ये सब कलामुल्लाह हैं। मगर साथ ही साथ ये कियाबें लोगों के लिए नबी की नबूव्वत स़ाबित करने के लिए दलील भी हुआ करती थी। ये किताबें इस बात की मुस्तहकम दलील होती थी कि अल्लाह ने अपने पैग़म्बरो को खास इल्म से नवाज़ा है। इतना ही नही, बल्कि नबी की ग़ैर-मौजूदगी में या उनके दुनिया से चले जाने के बाद यह सहीफा उनकी उम्मत के लिए मीरास़ और आसारे-नबवी होते, जिन से नेकूकार अफराद इस्तेफादा करते। मसलान क़ुरान-मजीद हमारे पैग़म्बर (स.अ.) का एक नायाब मोअजिज़ा है। क़ुरआन की तालीमात रोज़े-क़यामत तक इन्सानो के लिए मश्अले-राह और हिदायत है। यह क़ुरआन आस़ारे -मोहम्मदी (स.अ.) में से एक अज़ीम गौहर है। इसीलिए आँहज़रत (स.अ) ने क़ुरआन के बारे में बारहा यह इरशाद फरमाया कि मैं तुम्हारे दरमियान दो गिराक़द्र चींज़ें छोड़े जा रहा हूँ, एक किताबुल्लाह क़ुरआन,दूसरे मेरे अहलेबैत (अ.स.), अगर तुम इन दोनो से मुतमस्सिक रहे तो मेरे बाद कभी गुमराह न होगे।

इस तरह क़ुरआने-करीम और अहलेबैते-पैग़म्बर (स.अ.) हमारे लिए हादी हैं और रसूल (स.अ.) की मीरास़ हैं। मगर खुद अहलेबैते-पैग़म्बर (अ.स.) के लिए अल्लाह ने कुछ खास सिफात नाज़िल फरमाई हैं, उन में से एक मुस्हफे-फातेमा (स.अ.) है। इस सह़ीफे की फजीलत के लिए यह रिवायत काफी है-जिसे शेख कुलैनी (र.अ.) ने किताबे-काफी की पहली जिल्द में एक बाब “फीहे ज़िक्रों सह़ीफते वल जफ्रे वल जामेअते व मुस्ह़फ फातेमा (स.अ.)” में नक़्ल किया है। इमामे-सादिक (अ.स.) की एक हदीस में यह जुमला मिलता है कि आप (स.अ.) ने फरमाया :

क़ाल व इन्दना लमुस्ह़फ फातेमता (स.अ.) वमा युदरीहिम मा मुस्ह़फो फातेमता (स.अ.) क़ाल, क़ुल्तो वमा मुस्ह़फो फातेमता (स.अ.)? क़ाल मुस्ह़फुन फिहे मिस्लो क़ुरआनेकुम, हाज़ा सलास मर्रात, वल्लाहे मा फीहे मिन क़ुरआनेकुम हरफुन वाहेदुन।

(अल काफी, जि 1, स 239)

हमारे पास मुस्ह़फे-फातेमा (स.अ.) है। लोग क्या जाने कि मुस्ह़फे-फातेमा (स.अ.) क्या है? रावी ने सवाल किया: (मौला) यह मुस्ह़फे-फातेमा (स.अ.) क्या है? आप (अ.स.) ने जवाब दिया “यह मुस्ह़फ तुम्हारे इस क़ुरआन से तीन गुना बड़ा है, जब कि उस में क़ुरआन का एक हर्फ भी नही है।”

इतना ही नहीं,रिवायात बताती है कि इल्मे-लदुन्नी के मालिक अइम्मा (अ.स.) इस सह़ीफे को पढ़ा करते थे और इस से इस्तेफादा भी करते थे। काफी के इसी बाब में एक रिवायत में यह जुमला मिलता है।

काल कुन्तो अन्ज़ोरो फी केताबे फातेमत (स.अ.) लैस मिन मलेकिन यमलेकुल अर्ज़ इल्ला व होव मकतूबुम फिहे बेइस्मेही व इस्मे अबीहै।

मैंने किताबे-फातेमा (स.अ.) में देखा है कि कोई बादशाह ज़मीन (के किसी हिस्से) पर हुकूमत नहीं करेगा,मगर यह कि उसका नाम, उसकी वलदियत के साथ उसमे लिखा है।

क्या है मुस्ह़फे फातेमा?

मुस्ह़फे फातेमा (स.अ.) से मुतअल्लिक रिवायात शीया किताबों में तफसील के साथ नक़्ल हुई हैं। किताबे-काफी के अलावा दीगर मोअतबर किताब मसलन बसाएरुद-दरजात में भी इस सह़ीफे के बारे में पूरा एक बाब मौजूद है। किताबे-काफी में सिक्कतुल-इस्लाम शैख कुलैनी (र.अ.) ने मोअतबर सनद के साथ इमाम जाफरे-सादिक (अ.स.) से रिवायत की है कि “जब रसूले खुदा (स.अ.) की रेहलत हुई तो जनाबे फातेमा (स.अ.) इस क़दर  रन्जीदा हुईं कि खुदा के अलावा कोई और इस ग़म की शिद्दत को नही जानता था। पस अल्लाह ने जिब्रईल (अ.अ.) को उन की तरफ भेजा कि वह उन से बात करें, उन्हें तसल्ली और तशफ्फी देकर उनके ग़म व अन्दोह को कम करें। जिब्रईल (अ.स.) हर रोज़ आते, उनकी दिलजोई करते और उन से बाते करते —– जिब्रईल (अ.स,.) जो कुछ कहते अमीरुल- मोमेनीन (अ.स.) लिखते जाते थे, यहाँ तक कि एक किताब जमा हो गई  यही मुस्ह़फे-फातेमा (स.अ.) है और इस में क़यामत के दिन तक के तमाम हालात मौजूद है।”

एक रिवायत में यह भी मिलता है कि जब किसी सहाबी ने हज़रत इमाम-जाफरे-सादिक (अ.स.) से इल्मे-जफ्र के बारे में सवाल किया तो आप (अ.स.) ने फरमाया “यह इल्म एक गाय की खाल पर लिखा हुआ है, जिस की लंबाई सत्तर ज़िराअ हाथ और चौड़ाई,जो कुहान वाले ऊँट की रान की खाल के बराबर है और लोग जिन खबरों के भी मोहताज होगे,वह सब उस में मौजूद है। हर हुक्म और हर बात उसमें दर्ज है, हत्ता कि खराश का क्या कफ्फारा है,इसकी भी तफसील उसमें मौजूद है।”

रावी ने पूछा: क्या वह सहीफाए.फातेमा (स.अ.) है?

इमाम (अ.स.) कुछ देर खामोश रहे। फिर जवाब में फरमाया “—-रसूलल्लाह (स.अ.) की रेहलत के बाद जिब्रईल जनाबे सय्यदा (स.अ.) के पास आते और उन्हें तसल्ली व तशफ्फी देते थे। जनाबे-फातेमा (स.अ.) को उनके बाबा और खुद उनके मकाम व मरतबे की खबर देते और उनके बाद उनकी ज़ुर्रीयत के हालात की खबर देते थे, अली (अ.स.) उन सब को लिखते जाते और यही तहरीर “मुस्ह़फे फातेमा” है।”

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