आयते मुबाहिला में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सबसे अज़ीम फ़ज़ीलत
एक दिन बनी अब्बास के बादशाह ने इमाम अली रज़ा (अ.स.) से सवाल किया आप के नज़दीक अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) की अज़ीम-तरीन फ़ज़ीलत जो क़ुरआन में मौजूद है वह क्या है?
इमाम रज़ा (अ.स.) ने फ़रमाया अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) की सबसे अहिम फ़ज़ीलत क़ुरआन में आयए मुबाहिला है। फिर आप ने आयते मुबाहिला की तिलावत करते हुऐ फ़रमाया:
रसूले ख़ुदा (स.अ.), ने इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.), जो आप (स.अ.) के बेटे हैं, उनको बुलवाया और हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) को बुलवाया जो आयत में निसाअना की मिस्दाक़ हैं और अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को बुलवाया जो अल्लाह के हुक्म के मुताबिक अन्फुसना के मिस्दाक़ हैं और रसूले ख़ुदा (स.अ.) का नफ़्स और आप (स.अ.) की जान हैं। यह बात तो तय है कि कोई भी मख़लूक़ रसूल अल्लाह (स.अ.) की ज़ाते बा-बरकत से ज़्यादा जलीलुल-क़द्र और अफ़ज़ल नहीं है। इसी तरह कोई भी नफ़्स रसूले ख़ुदा (स.अ.) के नफ़्स व जान से बेहतर भी नहीं होना चाहिए। इस तरह नफ़्से रसूल होने की हैसियत से अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) भी रसूल अल्लाह (स.अ.) की तरह तमाम मख़लूक़ात से अफ़ज़ल हैं।
बात यहाँ तक पहुंची तो मामून ने कहा ख़ुदावंद ने अबनअना का सीग़ा जमा के साथ बयान किया है, जबकि रसूले ख़ुदा (स.अ.) सिर्फ़ अपने दो बेटों को साथ लाए हैं, निसा भी जमा है, जबकि आँहज़रत (स.अ.) सिर्फ़ अपनी एक बेटी को लाए हैं, पस यह क्यों ना कहें कि “अन्फुस” को बुलवाने से मुराद रसूले ख़ुदा (स.अ.) की अपनी ज़ात है, और इस सूरत में जो फ़ज़ीलत आप (स.अ.) ने अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के लिए बयान की है, वह ख़ुद ब-खुद ख़त्म हो जाती है?
इमाम रज़ा (अ.स.) ने जवाब में फ़रमाया
नहीं, तुम्हारी बात दुरुस्त नहीं है क्योंकि दावत देने वाला और बुलवाने वाला अपनी ज़ात को नहीं बुलाता, बल्कि दूसरों को बुलवाता है। आमिर और हुक्म देने वाले अपने आपको नहीं बल्कि दूसरों को अम्र करता है और हुक्म देता है, और चूँकि रसूले ख़ुदा (स.अ.) ने मुबाहिले के वक़्त अली बिन अबी तालिब (अ.स.) के सिवा किसी और मर्द को नहीं बुलवाया इसलिए यह साबित होता है कि अली (अ.स.) ही वह नफ़्स हैं जो किताबुल्लाह में अल्लाह का मक़सूद व मतलूब है और इसके हुक्म को ख़ुदा ने क़ुरआन में क़रार दिया है।
यह सुनकर मामून ने कहा आपके इस जवाब ने मेरे सवाल को जड़ ही से उखाड़ दिया।
(अल-फ़ुसूलुल-मुख़्तारा, अल-मुफ़ीद स. 38)