आ़बिदों की ज़ीनत अ़लीयुब्नुल हुसैन (अ़.स.)

पढ़ने का समय: 4 मिनट

मुख्त़सर तआ़रुफ़

विलादत:  38 हिजरी जमादीयुलअव्वल

मुक़ामे विलादत – मदीनए मुनव्वरा

कुनियत – अबू मोह़म्मद

अल्क़ाब – ज़ैनुल आ़बेदीन, सय्यदुस्साजेदीन, वारिसे इमामुल नबीईन, इमामुल मोमेनीन, आ़बिद, सज्जाद, वग़ैरह

वालिदे गिरामी – हज़रत इमाम हुसैन (अ़.स.)

वालिदए गिरामी – जनाबे शहर बानो या शाहे ज़नान

दादा – हज़रत इमाम अ़ली इब्ने अबी तालिब (अ़.स.)

दादी – खा़तूने जन्नत हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ़.)

नाना – आख़री बादशाहे ईरान यज़्दज़र्द बिन शह्रयार (केसरा नौशेरवान)

ख़ानदानी शराफ़त – आप को इब्नुल ख़ैरतीयान भी कहा जाता है। हज़रत ख़त्मी मर्तबत (स.अ़.) ने फ़रमाया ख़ुदा ने दुनिया में दो कौ़मों को ज़्यादा शराफ़त और इज़्ज़त अ़ता की है। अ़रब में क़ुरैश को और अ़जम में फ़ारस को। इस तरह इमामे सज्जाद (अ़.स.) दोनों तरफ़ से इज़्ज़त-ओ- शराफ़त के ह़ामिल क़रार पाए।

अज़वाज – उम्मे अ़ब्दुल्लाह फ़ातिमा दुख़्तरे इमामे ह़सन (अ़.स.), इनके अलावा और भी बीवियाँ थीं।

औलाद – अ़ब्दुल्लाह, ह़सन, ह़ुसैन, ज़ैद, उ़मर, अ़ब्दुर्रहमान, फ़ातिमा, सकीना, ख़दीजा, अ़तिया

मुद्दते इमामत – 35 साल चन्द माह

मुद्दते इमामत में बादशाहों का दौर – यज़ीद बिन मुआ़विया, मुआ़विया बिन यज़ीद, मरवान बिन ह़कम, अ़ब्दुल मलिक बिन मरवान, हेशाम बिन अ़ब्दुल मलिक, वलीद बिन अ़ब्दुल मलिक

शहादत – सन 95 हिजरी, 25 मोह़र्रम बज़रीए़ ज़ह्र

क़ातिल मलऊ़न – वलीद बिन अ़ब्दुल मलिक बिन मरवान। (मरवान बिन ह़कम जिसे पैग़म्बर (स.अ़.) ने मदीने से बाहर कर दिया था।)

क़ब्रे मुतह्हर – जन्नतुल बक़ीअ़ – चचा इमाम हसन के पह्लू में

उ़म्र – 57 साल

इमाम (अ़.स.) का ज़ोह्द – निहायत सादा ज़िन्दगी बसर करते थे। और जो सरमाया होता उसे फ़ुक़रा और मसाकीन में तक़सीम कर देते थे। रात की तारीकियों में जब हर तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ होता उस वक़्त इमाम अपने दोश पर रोटियाँ उठाकर ग़रीबों और मिस्कीनों में तक़सीम करते थे। और किसी अपने को ख़बर भी न होती थी। इमाम की शहादत के बाद पता चला कि सौ घर ऐसे थे जिनकी सरपरस्ती आप फ़रमाते थे। लेकिन ख़ुद घर वालों को इसकी ख़बर न थी कि येह कौन शख़्स है। मअ़्मूली ग़िज़ा पर इक्तेफा़ करते और परेशान हाल और मक़रूज़ के क़र्ज़ो को अदा फ़रमाते थे।

इ़बादत-ओ-मुनाजात का हाल – आप रोज़-ओ-शब में एक हज़ार रकअ़त नमाज़ पढ़ लेते थे। आपने एक मस्जिद बनाई थी जब लोग सो जाते थे, नाफ़ेलए शब के लिए आप मस्जिद में तशरीफ़ लाते और बुलन्द आवाज़ से दुआ़-ओ- मुनाजात फ़रमाते कि ऐ अल्लाह रोज़े क़यामत ख़ौफ़ से तेरे सामने खड़ा होने की ताक़त नहीं है। फ़र्शे ख़ाक पर सोने और तकिया लगाने को दिल नहीं चाहता और पैर ज़मीन पर ख़म होकर चेहरऐ मुबारक ख़ाक पर रख देते और इस क़द्र रोते कि घर के लोग आवाज़ सुनकर जमा हो जाते और गिरिया करने लगते थे। और बस यही फ़रमाते :

ऐ अल्लाह तू मुझसे राज़ी हो जा, जब मैं तुझ से मिलूँ

आप का अख़्लाक़ – हर तरह के लोगों के साथ ह़ुस्ने अख़्लाक़ और मकारिमे अख़्लाक़ से पेश आते। आप के सामने नादान, जाहिल, दुश्मन भी आप को बुरा भला कहते, मगर आप उनसे उनकी हाजत दरयाफ़्त फ़रमाते और मुश्किल दूर करते और मक़रूज़ के कर्ज़ की अदाएगी फ़रमाते, बेलिबास को लिबास अ़ता फ़रमाते। आप (अ़.स.) के अख़्लाक़ के लिए दुआ़ए मकारिमुल अख़्लाक़ और रिसालतुल हुक़ूक़ का मुतालेआ़ कर लिया जाए तो आप की आसमानी व इलाही शख़्सियत का अन्दाज़ा हो जाएगा। सह़ीफ़ए सज्जादिया बेहतरीन दुआ़ओं का मज्मूआ़ है। जिसे आप ने लोगों के लिए अपने बाद राहे हिदायत के लिए सरमाए के तौर पर अ़ता फ़रमाया है।

इमाम ज़ैनुल आ़बेदीन (अ़.स.) की इमामत पर हजरे अस्वद की गवाही

मुअर्रेखी़न ने लिखा है कि हज़रत मोहम्मदे ह़नफ़ीया और इमाम के दरमियान इमामत के मुतअ़ल्लिक़ कुछ इख़्तेलाफ़ हुआ और उन्होंने कहा कि इमाम ह़ुसैन (अ़.स.) के बाद इमामत उनका हक़ है। तो इमाम (अ़.स.) ने फ़रमाया कि क़ुरआन कहता है :

‘व ऊलुल अर्ह़ामे बअ़्ज़ोहुम औला मिन बअ़्ज़िन’

“और क़राबतदार आपस में बअ़्ज़ एक दूसरे से औला और बेहतर हैं।” आपने फ़रमाया कि यह आयत मेरी और मेरे बाद मेरी औलाद की इमामत पर दलालत करती है। इसके अलावा आपने फ़रमाया – चचा चलिए संगे अस्वद को बताएं वह जो फ़ैसला करे उस पर हम और आप क़ायम रहें। कहने लगे यह कैसे होगा, वोह न बोल सकता है और न ही जवाब  दे सकता है। तो इमाम (अ़.स.) ने फ़रमाया – हम लोगों के फ़ैसले के लिए अल्लाह उसे गोया कर देगा। दोनों हजरे अस्वद के पास आए, इमाम (अ़.स.) ने फ़रमाया – चचा इससे कलाम कीजिए, वह क़रीब गए, कलाम किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। फिर इमाम (अ़.स.) पत्थर के क़रीब गए और उस पर दस्ते मुबारक रख कर खु़दा की बारगाह में अ़र्ज़ किया कि इस पत्थर को गोया कर दे। फिर संगे अस्वद से कहा – मैं उस ख़ुदा का वास्ता देकर तुझसे सवाल करता हूँ जिसने मुझमें (मवासीके) इ़बादत और इस अम्र की शहादत की है कि किसने उन को अदा किया और किसने अदा नहीं किया, अमानत रखे हैं। मुझको ख़बर दो कि इमाम हुसैन (अ़.स.) के बाद इमामत व वसायत किस की तरफ़ है? यह सुनकर संगे अस्वद इस तरह हिलने लगा कि क़रीब था कि अपनी जगह से हट जाए। फिर हुक्मे ख़ुदा से गोया हुआ कि ‘ऐ मोहम्मदे ह़नफ़ीया इमामत अ़ली इब्नुल हुसैन (अ़.स.) के हवाले कर दो। तो जनाबे मोह़म्मद ह़नफ़ीया ने बारगाहे अह़दीयत में अ़र्ज़ किया परवरदिगार मुझे बख़्श दे। और इमाम ज़ैनुल आ़बेदीन (अ़.स.) की इमामत का इक़रार किया और इस्तेग़फा़र किया। (मुल्ला जामी, शवाहिदुन्नबी स.179 – वसीलतुन निजात से (339 मुल्ला मुबीन फरनगीए अली) ने यह वाक़ेआ़ इमाम ज़ैनुल आ़बेदीन (अ़.स.) और आप के बाद औलादे ताहेरीन की इमामत के लिए बड़ी अ़ज़ीमुश्शान दलील है) और इससे पता चलता है कि बारह इमामों की इमामत मिन जानिब अल्लाह होती है। वरना ह़जरे अस्वद जिस को ख़ुदा ने जिब्राईल के ज़रीए़ बेहिश्त से ख़ानए कअ़्बा में नस्ब कराया है वह इस तरह हक़ की गवाही न देता। उसका गवाह बनना तमाम आ़लमे इस्लाम के लिए लम्ह़ए फ़िक्र है। अगर मुसलमान उस पर सन्जीदगी और बग़ैर तअ़स्सुब के ग़ौर कर लेते तो सारे इख़्तेलाफ़ दूर हो जाते। अल्लाह हम सब को राहे हिदायत पर क़ायम रखे और इमामे ज़ैनुल आ़बेदीन (अ़.स.) की सीरत और किरदार के सहारे ज़िन्दगी बसर करने की तौफ़ीक़ इ़नायत फ़रमाए।

 

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