एहतेमामे ग़दीर -पार्ट-१
एहतेमामे ग़दीर -पार्ट-२
शिया हज़रात ग़दीर के बारे में जो कुछ अंजाम देते हैं या जो कुछ बयान करते हैं वह इन्हीं हिकमतों और मस्लेहतों की बुनियाद पर है, शिया इस लिए ग़दीर को अहमियत देते हैं और इसे अज़ीज़ और बाइसे बरकत शुमार करते हैं कि यह एक अक़ीदा है कि ग़दीर अगरचे एक तारीख़़ी हक़ीक़त है जो ज़मानए गुज़िश्ता से मुताल्लिक़ है मगर वह एक ऐसी हक़ीक़त और वाक़ईयत को बयान कर रहा है जो दामने इस्लाम से हरगिज़ हरगिज़ जुदा होने वाली नहीं है और वह है इमामत व विलायत, यह वह हक़ीक़त है जो दीने इस्लाम का एक इंतिहाई अहिम सुतून है, जिसके अंदर दीन व दुनिया दोनों की भलाई पोशीदा है, इस लिहाज़ से ग़दीर का रिश्ता हर जमान व मकान से जुड़ा हुआ है।
क्या पैगंबर अकरम स.अ. ने ग़दीरे ख़ुम में अमीरुल मोमेनीन अ.स. को अपने बाद इमाम अ.स. और वली की हैसियत से नहीं पहचनवाया था और उनके बारे में नहीं फ़रमाया: यह अली बिन अबी तालिब मेरे बाद मेरे भाई, वसी, जा-नशीन और मेरे बाद इमाम हैं वह ख़ुदा और रसूल स.अ. के बाद तुम्हारे नफ़्सों पर साहिबे इख़्तेयार हैं। (खुतबए ग़दीर 71 एहतेजाज 1/66, बिहार 37/2.1)
बेशक हज़रत ख़तमी मर्तबत स.अ. ने इन नूरानी कलेमात को ग़दीर के दिन बयान फ़रमाया है वही ग़दीर ख़ुम कि जिसके नाम के साथ अमीरुल मोमेनीन अली बिन अबी तालिब अलैहिमस्सलाम की विलायत व मुहब्बत दिल व दिमाग़ में उतर जाती है। जिस तरह पैगंबर अकरम स.अ. की बेअसत का वाक़िया यक़ीनी व क़तई है बिलकुल इसी तरह ग़दीर का वाकिया भी क़तई व यक़ीनी है। जिसके मनाबा व माख़ज़ का ज़िक्र तारीख़़ी किताबों में बेशुमार पाया जाता है।
क्या यह हक़ीक़त और पैगंबर अकरम स.अ. का ख़ास एहतिमाम हमें इस बात के लिए आमादा नहीं करता कि हम ग़दीर के लिए ख़ास तवज्जो के क़ाइल हों, जिस दिन आँहज़रत स.अ. ने ख़ुदावंदे आलम के हुक्म से अली बिन अबी तालिब अ.स. को मोअय्यन फ़रमाया और उनकी इताअत को हर अरब व अजम, छोटे बड़े, गोरे काले पर वाजिब क़रार दी है। ग़दीर के दिन आँहज़रत स.अ. ने अली अ.स. के हुक्म और फरमान को नाफ़िज़ क़रार दिया। उनके मुख़ालिफ़ को मलऊन शुमार किया, और चाहने वालों को कामयाब और नजात याफ़्ताह क़रार दिया, रसूले ख़ुदा स.अ. ने उन्हें अपने और तमाम लोगों से अफ़ज़ल और बरतर क़रार दिया, उनके बेशुमार सिफ़ात बयान किये, हज़रत अली अ.स. तफ़सीरे क़ुरआन में भी आँहज़रत स.अ. के जानशीन और आँहज़रत स.अ. के उलूम के हामिल हैं। अली अ.स. पेशवा-ए-हिदायत हैं, और उनके दुश्मन पर लानत और ख़ुदावंदे आलम का क़हर है। यह अमीरुल मोमेनीन अ.स. के चंद सिफ़ात थे जिन्हें हज़रत ख़तमी मर्तबत ने लोगों के सामने बयान फ़रमाया था। (खुतबए ग़दीर)
तो फिर हज़रत अली अ.स. की मारिफ़त व शनाख़्त के लिए कोशिश करना और लोगों को उनकी मारिफ़त से क़रीब करना क्या इस्लाम और पैगंबर इस्लाम के बारे में अक़ीदे की बुनियाद को मुस्तहकम करना नहीं है —और जब उन्हें पहचान लिया और जान लिया कि अमीरुल मोमेनीन अ.स. ख़ुदावंदे आलम की तरफ़़ से इमाम अ.स. वली हैं तो इस दिन जिस दिन ख़तमी मर्तबत ने उन्हें पहचनवा कर अपनी हिदायत व तब्लीग़ के मिशन को कामिल किया, एहतिमाम नहीं करना चाहीए?
अमीरुल मोमेनीन अ.स का ख़ुतबा एहतेमामे ग़दीर के बारे में:
ग़दीर के एहतेमाम और उसे पुर-कशिश अंदाज से अंजाम देने के बारे में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से बहुत सी हदीसें नक़्ल हुई हैं, बतौर नमूना अमीरुल मोमेनीन अ.स. के ख़ुतबए ग़दीर का कुछ हिस्सा पेश कर रहा हूँ:
तुम पर ख़ुदा की रहमत हो! ख़ुतबे के बाद तुम लोग अपने अपने घरों में जा कर अपने अहल व अयाल के लिए आसाइश और वुसअत का एहतेमाम करो, अपने भाईयों के साथ नेकी करो। और ख़ुदावंदे आलम ने तुम्हें जो नेकी अता की है उस पर शुक्र बजा लाओ ख़ुदा की नेअमतों से एक दूसरे को हदया पेश करो, जैसा कि ख़ुदावंदे आलम ने तुम पर एहसान किया है, और इस दिन की नेकी की जज़ा को गुज़श्ता व आइन्दा की ईदों के मुकाबले में चंद बराबर क़रार दिया है।
इस दिन नेकी करने से दौलत व सरवत में इज़ाफ़े का बाइस होगा, उम्र तूलानी होती है। इस दिन एक दूसरे से मुहब्बत व शफ़क़त का इज़हार, ख़ुदावंदे आलम के लुत्फ़ व इनायत का सबब होता है इस दिन ……. अहल व अयाल और भाईयों के लिए ख़र्च करो। और मुलाकात में मुसर्रत व शादमानी का सुबूत पेश करो। (मिसबाहुल मतहजिद स 524)
इस ऐतेबार से यह बात वाज़ह हो जाती है कि ग़दीर का एहतिमाम करना बेहूदा फ़ेअ्ल नहीं है और ना इसे बेकार और ला-हासिल क़रार दिया जा सकता है।
और अगर मआज़-अल्लाह बेकार और ला-हासिल क़रार देते हैं तो क्या यह अल्लाह ताला के इंतेख़ाब और पैगंबरे अकरम स.अ. के बयान को अहमियत ना देना और इस से मुँह मोड़ लेना नहीं कहा जाएगा?
बेशक हम अहलबैत अलैहिमुस्सलाम के फ़रमूदात की रौशनी में ग़दीर का एहतेमाम करते हैं। और यह एहतिमाम हत्ता अगर बतौर ज़ाहिरी माद्दी पहलूओं से ख़ाली भी हो-यक़ीनन ख़ुदावंदे आलम की बारगाह में तक़र्रुब का ज़रीया है, ग़दीर का तारीख़़ी होना उस की अहमियत में ज़र्रा बराबर किसी भी वजह से कोई कमी वाक़य नहीं होती है।
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