क्या शिया अली इब्ने अबी तालिब अ. स. के मक़ाम को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं?

पढ़ने का समय: 3 मिनट

कुछ नाम निहाद मुसलमान शियों पर बे-बुनियाद और मज़हका-ख़ेज़ इल्ज़ाम लगाते हैं कि मासूम इमाम ख़ुसूसन अमीरुल-मोमेनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. के मक़ाम को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं। दूसरे इल्ज़ामात के अलावा वह दावा करते है कि शियों ने हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. के मक़ाम को बेजा बुलंद किया है। शीया, हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. को सहाबा के मन्सब से ऊंचे मक़ाम पर यहाँ तक कि अंबिया अ.स. से भी अफ़ज़ल शुमार करते हैं और फिर इसी बुनियाद पर शियों पर हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अली अ.स. को उलूहियत के साथ मंसूब करने का झूठा इल्ज़ाम लगाते हैं। ऐसे इल्ज़ामात की बुनियाद पर वह शियों पर कुफ्ऱ व शिर्क का इल्ज़ाम लगाते हैं
जवाब:

ऐसा लगता है कि यह इल्ज़ामात शियों को काफ़िर क़रार देने और दहश्तगरदों को उनका खू़न बहाने का लाईसैंस देने के वाहिद मक़सद से ईजाद किए गए थे। यह इल्ज़ामात इन मुसलमानों को नाक़िस रौशनी में ज़ाहिर करते हैं क्योंकि ऐसा लगता है कि वह अपनी किताबों और अमीरुल-मोमेनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. के बारे में उलोमा के तबसरों से वाक़िफ़ नहीं हैं
शिया अपनी किताबों से हवालाजात पेश नहीं करते हैं ताकि वह हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. को साबित करें। फ़ज़ीलत, सूरज की चमक की तरह है| उन की ख़ूबीयों को छुपाया नहीं जा सकता है और यहां तक कि मुसलमानों के सबसे मुतास्सेबाना अफ़राद ने भी अपनी किताबों में उनकी ख़ूबीयों का तज़किरा किया है।

अगर यह मुसलमान सिर्फ़ उन किताबों का हवाला देते तो वह ख़ुद को और मुआशरे को मज़ीद परेशानी से बचाते। चूँकि इन्होंने शियों को काफ़िर होने का मौजू लाया है, लिहाज़़ा इन मुसलमानों का मसअला है शियों का नहीं है, यहाँ पर हम उनके अपने उलोमा का बयान नक़ल करेंगे जिन्होंने हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. की हैरत-अंगेज़ ख़ूबीयों को क़लम-बंद किया है।

तो वह सवाल जिसका जवाब देने की ज़रूरत है वह यह है कि क्या अहले सुन्नत के उलोमाए किराम अहमद बिन हनबल, इमामे शाफ़यी, शुऐब अंनिसाई को काफ़िर समझ सकते हैं? (जिनहो ने हज़रत अली बिन अबी तालिब अ.स. के फ़ज़ाइल का ज़िक्र किए हैं।)
अगर उनको काफ़िर नहीं समझा जा सकता है तो अहले तसन्नुन ज़राए से सिर्फ़ उन ख़ुसूसीयात को दोहराने के लिए शियों को काफ़िर कैसे समझा जा सकता है? शिया इन ख़ूबीयों को ईजाद नहीं कर रहे हैं ,जैसा कि इन मुसलमानों का दावा है।

मिसाल के तौर पर हम ने हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. के कुछ फ़ज़ाइल का तज़किरा किया है। जिसमें से हर एक को हम आइन्दा मज़मून में अहले तसननुन ज़राए से गहराई से तलाश करेंगे।

1. हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अली अ.स. और उनके शिया तमाम इन्सानों से अफ़ज़ल हैं। जो इस को मुस्तरद करता है वह काफ़िर है।
2. हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अली अ.स. सहाबा किराम से अफ़ज़ल हैं।
3. हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. और अइम्मा मासूमीन अलैहिमुस्सलाम के वसीले से माफ किया गया।
4. रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिमस्सलाम एक ही शजर से हैं और बकी़या दूसरे अफ़राद अलग शजर से हैं।
5. हज़रत रसूले ख़ुदा स.अ. और हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अली अ. एक ही नूर से ख़ल्क़ हुए हैं।
6. हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. सबसे पहले इस्लाम कबूल करने वाले थे और रसूले ख़ुदा स.अ. की तरह भी भी बुतों की परसतिश (पूजा) नहीं करते थे।
7. हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. का रसूले ख़ुदा स.अ. से वह निसबत थी जो जनाब हारून अ.स. को हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से थी। कोई भी रसूले ख़ुदा स.अ. से भाई के रिश्ते का दावे नहीं कर सकता था सिवाए हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. के।
8. हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. कई मौक़ों पर नबी स.अ. के ज़रिए वारिस, वज़ीर, वली और क़ाइद (इमाम) मुक़र्रर हुए।
9. हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिमस्सलाम मुस्लिम क़ौम के ‘अल-सिद्दीक़ुल-अकबर’ और ‘अल-फ़ारूक़’ हैं। वह अमीरुल-मोमेनीन हैं और इस जैसे दीगर अलक़ाब पर झूठे के सिवा कोई दावा नहीं कर सकता है।
10. हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. हक़ के साथ हैं और हक़ हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. के साथ है। और इस के अलावा भी बहुत सारी फ़ज़ीलतें हैं जो जिन्नात और बनी नौए इन्सान की तरफ़ से बयान की जा सकती हैं और वही क़लम और काग़ज़ से लिख सकते हैं। इन फ़ज़ाइल को सही-बुखा़री, मुस्लिम सुनने नसाई जैसी इंतिहाई क़ाबिले एहतिराम अहले तसननुन किताबों में वाज़ह तौर पर क़लमबंद किया गया है और अहमद इब्ने हंमबल, शाफ़ई और हत्ताकि हमअसर सलफ़ी हुक्काम जैसे नासिरुल-बानी (सलफियों की रवायात के ख़ुद-साख़्ता उस्ताद) जिसे आला अहले तसननुन हुक्काम ने तस्लीम किया है। इस के बाद शियों के ज़रिए इन फ़ज़ाइल के ईजाद (इख़तिरा) का कोई सवाल नहीं है। बल्कि, यह दावा कुछ नाम निहाद मुसलमानों ने ईजाद किया है जिनके पास इस हक़ीक़त का कोई जवाब नहीं है कि उनके अपने बुजुर्गों और असातिज़ा ने अपनी किताबों में हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. की गैर-मामूली फ़ज़ाइल को दर्ज किया है।

Be the first to comment

Leave a Reply