ज़मानए क़दीम से ग़दीर कलाम और इस्लामी मोतिका़दात में तारीख़ के अज़ीमतरीन मुबाहिस में से है और यह मसअलऐ इमामतो खि़लाफ़त के हस्सास तरीन मसाइल में से एक है।
मुसलमानों के गिरोहों के दरमियान इख़तेलाफ का नुक़तऐ आगाज़ पेगम्बरे इस्लाम (स.अ.) की जानशीनी का मसअला है। चुनान्चे शिया इस जानशीनी को इलाही उहदा और मन्सब जानते हैं। पैगम्बर अकरम (स.अ.) की तमाम नुसूसे सरीहा के बावजूद यह मसअला उम्मत के हवाले नही हुआ लेकिन अहलेसुन्नत इमाम को पैगम्बर इस्लाम (स.अ.)की जानिब से मुअय्यन शुदा नुमाइन्दा नहीं जानते बल्कि इस सिलसिले में यह अक़ीदा रखते हैं कि हुज़ूर (स.अ.) के बाद इस हस्सास मसअले का इख्तियार और इन्तेखा़ब मुसलमानों के हाथों में है। लिहाज़ा उनमें से एक गिरोह ग़दीर और ख़िलाफ़त की बहस को सिर्फ़ एक तारीखी़ बहस शुमार करता है और इसी के साथ यह अक़ीदा रखता है कि दौरे हाज़िर में इस बहस के तारीखी़ ज़ावियों पर गुफ़तगू करने की कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि इस मसअले पर गुफ़तगू करने से न तो इस्लाम ही को कोई फा़एदा पहूँचेगा और न ही मुसलमानों को। यहां तक कि यह गिरोह इस तरहा के मसाएल पर गुफ़तगू करने को सबबे इख्ते़लाफ़ और उम्मत और मुसलमानों के दरमियान तफर्क़ा का सबब समझता है।
इस मज़मून में हम तारीखी़ मसादिर और मोतबर रिवायात पर तकिया करते हुए इस नज़रईऐ की नक़दो करना चाहते हैं। अगर हम थोड़ा भी अहले सुन्नत के मुहद्देसीन की किताबों की छानबीन करें तो हमें उन किताबों में जगह जगह पर हदीसे ग़दीर की झलक ज़रूर नज़र आएगी। बहुत सारी रिवायतें ग़दीर और उसके मुतअल्लिक बिल ख़ुसूस रोज़े ग़दीर पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.) का वह तारीख़ी ख़ुत्बा अहले सुन्नत की किताबों में मिलेगा जैसे यह हदीस –
अलसतो औला बेकुम मिन अनफुसेकुम? फमन कुन्तो मौलाहो फ-अलूयुन मौलाहो, अल्लाहुम्मा वाले मन वालाहो व आदे मन आदाहो।
इल्मे हदीस के क़वाएद के ऐतेबार से यह हदीस हदीसे मुतावातिराह का जुज़ बन गयी है। बल्कि इस से भी बढ़कर यह कि एक सौ दस (110) सहाबा और पच्चासी (85) ताबईन से ज़्यादा ने इस वाक़ए गदीर को नक़ल किया है।[1]
चुनान्चे ज़ियाउद्दीन मक़बली (मुतवफ्फी 1108 हि.) अहले सुन्नत के आलिम फ़रमाते हैं अगर (इन तमाम मदारिक और मसादिर के बावजूद) हम हदीसे ग़दीर को मुसल्लम न मानें तो हमें यह ज़रूर मानना पड़ेगा कि दीने इस्लाम में कोई भी वाक़िया क़ाबिले इस्बात नहीं है।[2]
इसी तरह शम्सुद्दीन जज़ाऐरी (मुतवफ्फी 739 हि.) भीमुनकेरी ने हदीसे ग़दीर को मोअतबर न मानने वाले को जाहिलो नाआगाह शुमार किया है।[3]
एक तरफ तो बेशुमार क़राऐनो दलाएल जो तारीख़ और मतन ख़ुतबे में मौजूद हैं जो इस बात पर दलालत करते हैं कि यह हदीस अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ.स.) की जानशीनी और ख़िलाफ़ते बिला फ़स्ल को वाज़ेह करती हैं और दूसरी तरफ उन आयात की वजह से जो उस दिन नाज़िल हुईं[4] ख़ुदा वन्दे आलम पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.) की 23 साला ज़हमात और हुज़ूर (स.अ.) के वाकई फ़िदाकार अस्हाब की ज़हमतो को इस शर्त पर क़ाबिले कुबूल समझता है कि वह (आँ हज़रत) अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ.स.) को मन्सबे इमामतो खिलाफत पर फा़ऐज़ फ़रमाऐं। और लोगों को उनकी पैरवी का हुक्म दें, यानी अल्लाह एक ऐसा दीन चाहता है जो तमाम और कामिल हो जिसमें हज़रत अली (अ.स.) की विलायत के साथ उसकी मर्ज़ी शामिल हो।
इसीलिए शिआ इस वाक़ऐ ग़दीर को सिर्फ़ ख़िलाफ़त और एक तारीखी़ मसले के उन्वाल से नहीं देखते बल्कि कुरआने मजीद की नस्से सरीह की रौशनी में दीने इस्लाम को अइम्माए मासूमीन (अ.स.) की विलायत के बग़ैर एक नाकिस दीन जानतें है।
जिस तरह आयऐ अकमल से यह साबित होता है कि रोजे क़्यामत सिर्फ़ दीने इसलाम ही बन्दों से क़ुबूल किया जऐगा, उसी तरह उन लोगों का भी इस्लाम जो हज़रत अली (अ.स.) की विलायत क़ुबूल नहीं करते कामिल नही होगा। और वह दीन नाकि़स, क़ाबिले क़ुबूल और मूरिदे रिजा़यते परवरदिगार नहीं है।
शियों के नज़रइये औऱ अक़िदे के ऐतेबार से इमाम हरगिज़ हुकूमत और ज़िमामदारी तक महदूद नहीं है। बल्कि यह तो इमामत की शान में से एक शान है लिहाज़ा इमामत का लाज़मा यह है कि अहलेबैत (अ.स.) के मुक़ामें इल्मी को क़ुबूल किया जाए। वह भी इस उन्वान के तहत कि अहलेबैत (अ.स.) ही उलूमो मआरिफे़ क़ुरआन और सुन्नते नबवी (स.अ.) के हक़ीक़ी आलिम हैं। यानी सिर्फ़ अहलेबैत (अ.स.) ही हैं जो क़ुरआन और सुन्नते रसूल (स.अ.) को बग़ैर किसी कमी और ज़्यादती के जानते हैं और दूसरो को भी सही तालीम देते हैं। लिहाज़ा तमाम लोगों पर वाजिब है कि उन्हीं की तरफ रुजू करें और दीन को सिर्फ़ उन्हीं से हासिल करें। बल्कि कुल्ली तौर पर उनकी इताअतो पैरवी करें। लेकिन अमली मैदान में हम यह देखते हैं कि बहुत सारे मुसलमानों ने अहलेबैत (अ.स.) की राहो रविश को इख्ते़यार नही किया बल्कि दूसरों की पैरवी को अहलेबैत (अ.स.) की मुताबेअतो पैरवी पर फौक़ियत दी है।
दीने इस्लाम को सही और हक़ीक़ी मम्बे से न लेने के बल्कि इलाही नुमाइन्दों के अलावा दूसरो की पैरवी की वजह से जो मनहूस नताएज और नागवार मसाइल पैदा हुए, सुन्नते पैग़म्बर की पैरवी न करने की वजह से वह आज तक उम्मत के दामनगीर हैं।
वाक़ेअन बाबे मदीनतुल इल्म, उलूमे इलाही के मखज़न और हक़्क़ो बातिल के दरमियान जुदाई डालने वाले को छोड़ देना और गा़सिबाने ख़िलाफ़त की पैरवी करना, क्या यह सब उम्मत के मुतफ़र्रिक होने और मुसलमानो के गुमराही का सबब नहीं है?
वह ख़लिफा़ जो खा़नदाने रिसालत पर हमला करने का हुक्म सादिर करे[5] और मिम्बरे रसूल पर बैठकर जिगर गोशे रिसालत हज़रत फा़तेमा ज़हेरा (स.अ.) को (नअउज़ोबिल्लाह) झूठा ख्याल केर।[6] इस हालत में कि क़ुरआने मजीद के कितने कलेमात ऐसे हैं जिन का माना वह ख़ुद नहीं जानता और उन्ही कलेमात को अपनी मर्ज़ी और राऐ से तफ़सीर करता है।[7] या वह कि जो एक गिरोह के साथ हज़रत अली (अ.स.) के बैतुश शरफ़ की तरफ़ सिधारे और पेग़म्बर इस्लाम (स.अ.) की लख्ते़ जिगर फा़तेमा ज़हरा (स.अ.) की हुर्मतो ऐहतेराम का पासो लिहाज़ न रखते हुए शहज़ादी के घर में आग लगाए। और शेरे किरदिगार और इमामुल मुत्तकीन हज़रत अली (अ.स.) को क़त्ल की धमकी दे ताकि हज़रत से सकी़फा़ई ख़लीफा़ की बैअत ले।[8] या वह कि जो पैग़म्बर अकरम (स.अ.) से रिवायतो हदीस नक़ल करने पर पाबन्दी आइद करे। इस ज़ोम में कि कहीं लोग क़ुरआने मजीद को भूल न जाऐं।[9]और इसी दलील की बुन्याद पर अपनी ख़िलाफ़त के ज़माने में अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद और दूसरे बहुत से अस्हाब की इसी वजह से वह लोग पैग़म्बरे अकरम (स.अ.) से हदीसें नक़ल करते हैं, मदीने में क़ैद कर दे।[10] और या वह ख़लिफ़ा जो जनाबे अबूज़र को सिर्फ़ बैतुल माल का अपनी मर्ज़ी से तसररुफ़ करने पर ऐतेराज़ करने की वजह से रबज़ाह भेज दे।[11] इन्साफ़न क्या यह लोग खा़नवादऐ इस्मत और तहारत से मुका़एसे के का़बिल हैं? और क्या वाक़ेअन उन लोगों का रवय्या और किरदार इस लायक़ है कि यह मुसलमानों की हिदायत के लिए मशअले राह बन सकें?[12]
उसके बाद तुर्रा यह के मआविया ने भी क़सम खा ली थी कि पैग़म्बर इस्लाम (स.अ.) के नाम को इस दुनिया से ख़त्म करदे।[13]
लिहाज़ा उसने हदीसे गढ़ने वालों को अपने दरबार में बुलाया ताकि उसके सिक्को के जरिए पैग़म्बर अकरम (स.अ.) की तारीखी ज़न्दगी और आँ-हज़रत की सुन्नत में तहरीफ हो जाए और खु़लफा़ (गासेबीने खिलाफत) की मदह में झूठी हदीसें गढ़ही जाऐं।[14]
लिहाज़ा उन लोगों की कज फिकरी और दीन के मुताअल्लिक फहम न रसा न रखने की बुनियाद पर बेचारे मकतबे अहले सुन्नत के कितने सालेहीनो ज़ाहेदीन ने महज़ खु़शनूदिए परवरदिगार की खा़तिर झूठी हदीसें गढ़ना शुरू कर दिया।[15]
इस तरह बहुत सारे मुख्त़लिफ मौज़ूआत की किताबों की बुनियाद इन्हीं झूठी रिवायतों पर रखी गईं। लिहाज़ा रफता रफता तराशे और गढ़े हुए मज़ाहिब यके बाद दीगरे ज़ुहूर पज़ीर हुए और मुसलमानों को जो सिराते मुस्तक़ीम से दूर हो चुके थे मुतफर्रिक कर दिया और रोज़ बरोज़ वहदते इस्लामी की बुनियाद मुताज़लज़ल होती चली गई। दर हालांकि क़ुरआने मजीद के इरशाद के मुताबिक कामयाबी और इथ्तेहाद का तन्हा रास्ता अल्लाह के हबलुल मतीन यानी अली (अ.स.) से तमस्सुक है।
वअतसेमु बे हबलिल्लाहे जमीअन वला तफर्रकू…[16]
पैग़म्बरे अकरम (स.अ.) ने इस आयत की तफ़सीर में फ़रमाया – अल्लाह की वह रस्सी जिस से तमस्सुक का हुक़्म दिया गया है अली (अ.स.) और उनके अहलेबैत (अ.स.) है।[17] दूसरी जगहों पर भी मिलता है कि हज़रत अली (अ.स.) ने रसूले खु़दा (स.अ.) की खि़दमत में अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! निजात पाने वाला फिर्क़ा कौन है? तो उस वक़्त आँ-हज़रत (स.अ।) ने फ़रमाया – वह जो तुम्हारी और तुम्हारे चाहने वालों की रविशो सिरत को अपनाऐं और उससे तमस्सुक करें।[18] इसीलिए शिया ग़दीर को कु़रआनो सुन्नते नबवी और हक़ीक़ी इस्लाम को कामिल करने वाला समझते हैं बल्कि जब तक इस्लाम का नामो निशान बाक़ी है और जब तक मुसलमानों को हिदायतो सआदत की तशवीश होगी उस वक्त तक पैगामें गदीर जो ख़ुद सिराते मुस्तकी़म की तरफ़ दावत देने वाला और उसकी निजात का वाहिद ज़रिया और रास्ता है ज़िन्दा और जावेद है और हमेशा बाकी रहेगा।
[1] मुराजेआ फरमाऐं अबकातुल अनवार तालीफ अल्लामा मीर हामिद हुसैन हिन्दी, अल गदीर तालीफ अल्लामा अमीनी
[2] अल गदीर ज 1 स 308
[3] अहसनुल मतालिब स 48
[4] आयऐ इकमाल, सूरऐ माएदा आयत 3 और आयऐ इब्लाग सूरऐ माएदा आ 67
[5] तारीखे अबुल फिदा ज 1 स 154, अल इकदुल फरीद ज 2 स 253
[6] शरहे नहजुल बलागाह, इब्ने अबिल हदीद मोअतज़ली ज 4 स 80 तबा क़दीम
[7] सुनने दारमी ज 2 स 345, सुनने बहीक़ी ज 6 स 223, तफसीरे इब्ने कसीर ज 1 स 460
[8] तारीखे अबुल फिदा ज 1 स 156, अल इमामतो वस्सियासा ज 1 स 12, तारीखे तबरी ज 3 स 198, शरहे नहजुल बलागाह ज 1 स 134, अन्साबुल अशरफ बिलाज़री ज 1 स 584
[9] सुनने दारमी ज 1 स 85, मुसतदरिकुस्सहीहैन ज 1 स 102
[10] मुस्तदरिकुस्सहीहैन ज 1 स 110, तज़केरतुल हुफ्फाज़ ज 1 स 7, मजमउज़्ज़वाएद ज 1 स 149
[11] सही बुखारी ज 3 स 7, किताबुलज़्ज़कात, अन्साबुल अशराफ ज 5 स 52-54, फतहुल बारी ज 3 स 213, कामिल इब्ने असीर ज 3 स 43
[12] किताबुल ग़दीर ज 9-6 में अहले सुन्नत की किताबों से बहुत सारे मताइन और उनकी बिदअतो की तहकीक हुई है और उन लोगो की मदह में जो हदीसे गढ़ी गई है। अल्लामा अमीनी ने उनकी नक़दो बर्रसी की है।
[13] मुरूजुज़्ज़हब मसऊदी ज 2 स 341-342, अल अखबार अल मवफ्पकीयात स 576, अल गदीर ज 10 स 283
[14] शरह नहजुल बलागाह ज 1 स 358 तबा कदीम, अल गदीर ज 11 स 73
[15] सही मुस्लिम ज 1 स 13, तारीखे बगदाद ज 2 स 98
[16] सुरए आले इमरान आयत 130
[17] अस्सवाएकुल मोहर्रेका स 93
[18] अल उसवतो फी तमीजिस्सहाबा ज 2 स 174
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