रसूल (स.अ़.व.आ.) के ह़क़ीक़ी अस्ह़ाब कौन हैं?

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रसूल (स.अ़.व.आ.) के ह़क़ीक़ी अस्ह़ाब कौन हैं?

अह्ले तसन्नुन के यहाँ येह रवायत बहुत मशहूर है कि आँह़ज़रत (स.अ़.व.आ.) ने फ़रमाया: “मेरे अस्ह़ाब सितारों की तरह़ हैं। उन में से जिसकी चाहो इत्तेबा करो, हेदायत पा जाओगे।” इस रवायत को लेकर मुसलमानों के दरमियान सह़ाबा की ह़ैसीयत के बारे में काफ़ी बह़्स-ओ-मुबाह़ेसा किया गया है। चूँकि इस रवायत की बेना पर सह़ाबा में से किसी एक की इत्तेबा करना हेदायत का बाए़स है, बअ़्‌ज़ लोग उनके मअ़्‌सूम होने का दअ़्‌वा भी कर ड़ालते हैं।

आख़िर येह दअ़्‌वा किस ह़द तक दुरुस्त है? क्या रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की इस रवायत की कोई मुख़्तलिफ़ तफ़सीर है जिसे मुसलमानों की अक्सरीयत ने नज़र अन्दाज़ कर दिया है।

दर्जे ज़ैल मुक़ालेमा में नबी (स.अ़.व.आ.) के सह़ाबा की सितारों से तअ़्‌बीर के मक़ाम को वाज़ेह़ किया गया है जिससे हम पर ज़ाहिर हो जाता है कि यक़ीनी तौर पर कौन ह़ज़रात सह़ाबा कहलाने के अह्ल हैं।

रावी ने इमाम अ़ली रज़ा (अ़.स.) से सवाल किया कि रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की इस ह़दीस का क्या मतलब है कि मेरे सह़ाबा सितारों की मानिन्द हैं। जिस किसी की भी तुम पैरवी करोगे, हेदायत पा जाओगे।

रावी ने मज़ीद, इमाम (अ़.स.) से रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) की मुन्दर्जा ज़ैल ह़दीस के बारे में भी, दरियाफ़्त किया: मेरे सह़ाबा को मेरे लिए छोड़ दो।

इमाम (अ़.स.) ने जवाब दिया: इन रवायात में अस्ह़ाब से मुराद वोह लोग हैं जिन्होंने पैग़म्बर (स.अ़.व.आ.) के बअ़्‌द (अह्लेबैत (अ़.स.) को छोड़ कर) अपने आप को तब्दील नहीं किया और दीन में किसी तरह़ की इख़्तेराअ़्‌ नहीं की।

रावी ने दरियाफ़्त किया: हम येह नतीजा क्यों कर निकाल सकते हैं कि अक्सर सह़ाबा रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) के बअ़्‌द बदल गए या फिर दीन में बिदअ़त की, जैसे की आप कहते हैं?

इमाम (अ़.स.) ने फ़रमाया: क्योंकि रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) ने ख़ुद फ़रमाया है मेरे बअ़्‌ज़ अस्ह़ाब को क़यामत के दिन मेरे ह़ौज़ के क़रीब आने से मनअ़्‌ कर दिया जाएगा, बिल्कुल उसी तरह़ जैसे लोग दूसरों के ऊँटों को पानी पीने से दूर ढ़केल देते हैं। उस वक़्त मैं कहूँगा: ऐ रब! वोह मेरे सह़ाबा में से हैं, मेरे सह़ाबा।

उस वक़्त मुझ से कहा जाएगा: क्या तुम नहीं जानते कि उन्होंने तुम्हारे बअ़्‌द क्या किया?

फिर उन्हें पकड़कर मुझसे दूर ले जाया जाएगा और उनसे कहा जाएगा: येह उन झूठे बोह्तानों की वजह से हैं जो तुम ने (नबी पर) बाँधा था।

इमाम (अ़.स.) मज़ीद फ़रमाते हैं: क्या येह वोह नहीं हैं जिन्होंने (पैग़म्बर के बअ़्‌द अपने अ़क़ाएद को) तब्दील किया और दीन में इख़्तेराअ़्‌ किया?

(उ़यूनुल अख़बार, जि.२, स.८७, ह़.३३; बेह़ारुल अनवार, जि.२८, स.१९)

वाज़ेह़ तौर पर नबी (स.अ़.व.आ.) की ह़दीस मुबारक में सितारों से मवाज़ना वाले सह़ाबा वोह नहीं हैं जिन्होंने रसूले इस्लाम (स.अ़.व.आ.) की शहादत के बअ़्‌द तकब्बुर के साथ दूसरों पर अपनी बरतरी क़ाएम करने के लिए सोह़्बते नबी का दअ़्‌वा किया।

इसलिए कि उन अस्ह़ाब ने रसूल (स.अ़.व.आ.) के बअ़्‌द अह्लेबैत (अ़.स.) के दामन को छोड़ दिया और अपने दीन से फिर गए। उन्होंने बिदअ़तों के ज़रीए़ मज़हबी क़वानीन में तब्दीलियाँ कीं।

अगर मुसलमान उन अस्ह़ाब को हेदायत की तरफ़ ले जाने वाले सितारे की तरह़ मानें तो बेशक वोह दीन में शकूक-ओ-इब्हाम के शिकार हो जाएँगे।

मशहूर शीआ़ आ़लिमे दीन राज़ीयुद्दीन ह़ाफ़िज़ रजब इब्ने मोह़म्मद इब्ने रजब अल-बुरसी हिल्ली (अ़.र.) लिखते हैं:

यक़ीनन सह़ाबए किराम से मुराद रसूलुल्लाह (स.अ़.व.आ.) से सिर्फ़ आप के अह्लेबैत हैं वरना मज़हब में तज़ाद होगा और येह क्योंकर मुमकिन है कि गुमराह शुदा ह़ज़रात, जो सियाह चेहरों के साथ ह़ौज़ पर पहुँचेंगे, कभी सितारों की मानिन्द हो सकते हों और मुसलमान उन से हेदायत ह़ासिल करें?

यक़ीनन आँह़ज़रत (स.अ़.व.आ.) ने एअ़्‌लान किया है कि: इस उम्मत में मेरे अह्लेबैत की मिसाल आसमान के सितारों की तरह़ हैं। जब एक ओझल हो जाएगा तो दूसरा तुलूअ़्‌ होगा। और येह सिलसिला क़यामत तक जारी रहेगा।

(अल काफ़ी, जि.१, स.३३८; सह़ीह़ बुख़ारी किताब ८१, रवायत १७०-१७४; अल मशरिक़, स.३२१)

पस अह्लेबैते अतहार ही वोह अस्ह़ाब हैं जिनका मवाज़ना सितारों से किया गया है जो रसूले अअ़्‌ज़म (स.अ़.व.आ.) के बअ़्‌द उनकी उम्मत की रहनुमाई करेंगे।

इस तरह़ की मुतअ़द्दिद ह़दीसें मौजूद हैं जो सह़ाबा के इस गिरोह की वाज़ेह़ तौर पर निशानदही करती हैं जो क़ौम में सितारों की मानिन्द हैं और मुसलमानों की हेदायत करते हैं।

ह़ुज़ूरे अकरम (स.अ़.व.आ.) ने इर्शाद फ़रमाया: तुम में मेरे अस्ह़ाब की मिसाल सितारों जैसी है। जो भी उन्हें क़बूल करेगा वोह हेदायत पाएगा।

आप (स.अ़.व.आ.) से पूछा गया: आप के अस्ह़ाब कौन है?

आँह़ज़रत (स.अ़.व.आ.): मेरे अह्लेबैत।

(इस्बातुल हुदा, जि.२, स.१८९; मअ़्‌निल अख़बार, स.१५६-१५७; बसाएरुद्दरजात, जि.१, स.११; बेह़ारुल अनवार, जि.२२, स.३०७)

येह बात इसलिए भी मअ़्‌क़ूल है क्योंकि अह्लेबैत (अ़.स.) मअ़्‌सूम हैं जैसा कि सूरह अह़ज़ाब की आयत ३३ में एअ़्‌लान किया गया है। लेहाज़ा सिर्फ़ वही अह्ल हैं कि मुसलमानों को तारीकियों से नूर की तरफ़ रहनुमाई करें (एक दरख़्शाँ सितारे की तरह़)। अपनी इ़स्मत से सिर्फ़ वही मुसलमानों को हेदायत, ह़िकमत, रोशनी, रह़मत और एलाही फ़ज़्ल का यक़ीन दिला सकते हैं।

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