क्या सिर्फ ‘ अहले कूफा़’ ही बेवफ़ा होते हैं ??
पढ़ने का समय: 3 मिनटमुसलमानों की तारीख़ में जब कभी भी बेवफ़ाई और अहद शिक्नी की मिसाल देनी होती है तो लोग सिर्फ़ अहले कूफा़ की मिसाल देते हैं। इसका सबब कर्बला का सन 61 हिजरी का वो वाक़ेआ […]
पढ़ने का समय: 3 मिनटमुसलमानों की तारीख़ में जब कभी भी बेवफ़ाई और अहद शिक्नी की मिसाल देनी होती है तो लोग सिर्फ़ अहले कूफा़ की मिसाल देते हैं। इसका सबब कर्बला का सन 61 हिजरी का वो वाक़ेआ […]
पढ़ने का समय: 4 मिनटबहुत से मुसलमान यह समझते हैं कि आँ-हज़रत की मौत एक बीमारी की वजह से हुई थी,जबकि हक़ीक़त इसके बर-अकस है इस ग़लत – फहमी के आम होने की वजह शायद मुसलमान ज़ाकेरीन; उलेमा और […]
पढ़ने का समय: 2 मिनटरसूले-खु़दा (स.अ.) की रोज़े वफात यानी दोशम्बाह को सुबह में बाज़ असहाब आप की ख़िदमत में जमा हुए तो आँ-हज़रत (स.अ.) ने उन से फरमाया: ‘क़लम और काग़ज़ ले आओ ताकि ऐसा नविश्ता लिख दूँ […]
पढ़ने का समय: 4 मिनटबाज़ अहले तसन्नुन ओलमा की जानिब से वक़्तन फ़वक़्तन यह बात पेश की जाती रही है कि वह हक़ पर हैं, क्योंकि अक्सरियत उनके साथ है। अपनी बात को सही साबित करने के लिए वह […]
पढ़ने का समय: 5 मिनटमाहे रमज़ान के आख़री अशरे के आग़ाज़ में टीवी चैनलों पर मौला अली (अलैहिस्सलाम) की शहादत से मुतल्लिक़ प्रोग्राम नश्र किए जाते हैं। आम तौर पर उन प्रोग्रामों में इसलाम के मुख़्तलिफ़ मकातिबे फ़िक्र और […]
पढ़ने का समय: 4 मिनटकुछ दिनों क़ब्ल एक मक़ाला नज़रों से गुज़रा कि इसके लिखने वाले ने अइम्माए मासूमीन (अ.स.) की बाज़ रिवायात व फ़रमाइशात को उन्वान बनाया और तारीख़ के बाज़ वाक़ेआत से कजफ़हमी की बुनियाद पर ग़लत […]
पढ़ने का समय: 4 मिनटअल्लाह ने इंसान की हिदायत के लिए मुसलसल अन्बिया और मुरसलीन भेजे, ताकि वह बनी आदम को इंसानियत का दर्स दें, और उनका किरदार इस बुलन्दी पर ले जायें कि फ़रिश्ते उनकी खि़दमत करने में […]
पढ़ने का समय: 3 मिनटएक मर्तबा हारून रशीद ने अपने एक मुशीर जाफ़र बिन यह्या बरमक्की से कही कि मैं चाहता हूँ कि छुपकर मुतकल्लेमीन (कलाम करनेवाले) की बात सुनूँ ताकि वह खुलकर अपने दलाएल पेश करे और जैसे […]
पढ़ने का समय: 2 मिनटरसूल (स.अ.) की रेहलत के बाद जो वाकेआत रूनुमा हुए उनमें से अहम मुकद्दमए फिदक था। बल्कि यह वाकेआ हिदायत हासिल करने और उनके लिए एक मश्अले राह है। इस मुकद्दमे में जो दो अहम […]
पढ़ने का समय: 2 मिनटरसूलल्लाह (स.अ.) ने सन 7 हिजरी में बाग़े-फिदक ब- हुक्मे खु़दा अपनी पारए-जिगर, फातिमा ज़हेरा (स.अ.) को हिबा किया और तब से यह बाग खातूने-महेशर की मिलकियत में रहा। जब रसूलल्लाह (स.अ.) की वफात हुई […]
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